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આચાર્યશ્રી યશોદેવસૂરિજી લિખિત
જ્ઞાળની આશાવનાથી બચો (ही). प्रवचन
वि. सं. २०४९
४.सन् १८८3
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ज्ञान क्या है ? ज्ञानकी आशातना किसे कहते हैं ? और उस आशातनाके पापोंसे किस प्रकार बच सकते हैं ?
इस विषयमें विस्तृत जानकारी देनेवाला लेख
यह लेख विश्वकी समस्त मानवजातिको उद्देश्यकर लिखा गया है। अतः सभी लोग पढ़ें।
- लेखक : आचार्य श्री यशोदेवसूरिजी भूमिका-महाराष्ट्रके गांधीजी बालगंगाधर तिलकने आजसे प्रायः ५० वर्ष पूर्व भारतको आजादीके संघर्षक समय देशवासियोंको यह मंत्र दिया था कि “स्वराज्य प्राप्त करना यह प्रत्येक भारतवासीका जन्मसिद्ध अधिकार है" इसके स्थान पर मैं अपने उपदेश प्रसंगमें कहता हूँ कि "मोक्ष प्राप्त करना यह प्रत्येक जैनका जन्मसिद्ध अधिकार है। प्रत्येक जैन मोक्षार्थी होना चाहिए ऐसी ज्ञानियोंकी वाणी है। यह इस लिये है कि अनादिकालके जन्म-मरणके चक्करका, सारे दुःखोंका अन्त लाना हो और अनंता शाश्वत सुखका भोक्ता बनना हो तो उसे मोक्ष प्राप्त करना ही चाहिये। इस मोक्षप्राप्तिका मार्ग क्या है ? यह बात जैनधर्म के शास्त्रोंमें स्थान स्थान पर जोरदार रूपमें बतायी है और वह ये है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र। इन
तीनोंकी उपासना--साधना यदि समझकर और भावपूर्वक होती जाय तो यह आत्मा देर-सबेर Th किसी न किसी भवमें संसारके वंधनोंको तोडकर मुक्तिसुखका अधिकारी बन सकता है। इन पद तीन कारणोंमें ज्ञानको भी कारण माना है। और उसे मोक्षका अनन्य-प्रधान कारणरूपमें स्वीकृत 45
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