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किया है। ज्ञान यह आत्माका अपना शाश्वत गुण है। जहाँ ज्ञान है वहाँ चेतना है और जहाँ चेतना है वहाँ ज्ञान है। यह "जीव" है इसकी यदि कोई पहचान करानेवाला हो तो वह ज्ञान चेतना ही है। यह चेतना सूक्ष्म रीति से भी जीवमात्रमें उपस्थित है। इस ज्ञानचेतना का अंतरात्मामें उत्तरोत्तर विकास होता जाय और ज्ञान प्रकाश पर रहा हुआ आवरण हटता जाय तो आत्माका संपूर्ण ज्ञानप्रकाश प्रकट हो जाय, जिसे जैन परिभाषामें "केवलज्ञान" कहा जाता है । व्यवहारमें इसे " त्रिकालज्ञान" कहते है। । इस ज्ञानका प्रकाश प्राप्त करना बहुत सरल बात नहीं है। अधिकांश जीवोंको अनंत जन्मोंके बाद होता है लेकिन इसके लिये प्रयत्न अनेक जन्म पहले शुरू करना पडता । अतः नया नया सम्यग्ज्ञान सीखना, दूसरोंको ज्ञानदान करते रहना चाहिये। साथ ही साथ ज्ञान प्राप्त करानेवाले ज्ञानियों, गुरु या | शिक्षकका विनय, विवेक और वहुमान तथा आदर करना चाहिये । तदुपरांत ज्ञानप्राप्तिमें कारणभूत पुस्तकोंमें रहा हुआ "अक्षरज्ञान" है, इस लिये सर्व प्रथम इन ज्ञान - अक्षरोंका बहुमान आदर करते रहने से | ज्ञानकी उपलब्धि भी सर्वथा प्रकारसे आशीर्वादरूप हो जाय। परिणामतः किसी जन्मके अंतमें पूर्ण ज्ञानप्रकाशकी प्राप्ति हो ।
मोक्षप्राप्ति के अधिकारी अजैन भी हैं।
उपर जो बात कहीं वह केवल जैनोंके लिए ही नहीं, मात्र जैन संप्रदायकी बात नहीं, यह वात । चाहे जिस देशके, चाहे जिस धर्मके व्यक्ति पर लागू पडती है। संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करनेका और मोक्ष | प्राप्त करनेका अधिकार सबको है। मोक्ष अर्थात् सदाके लिये कर्मोंसे मुक्ति और सर्व दुःखोंका और जन्ममरणके चक्करका अन्त होता है ।
अक्षरज्ञान नींव है और केवलज्ञान शिखर है ।
कितने लोगोंका प्रश्न है कि ज्ञानको पवित्र कैसे माना जाय ? इसके उत्तरमें लेख बहुत लंबा हो जाय किन्तु संक्षेपमें बतलाता हूँ कि अक्षर यह नींव है और इसका शिखर केवलज्ञान ( त्रिकालज्ञान) का महाप्रकाश है। एक अक्षरका ज्ञान भावि जन्मोंमें किसी भवमें अनंतानंत अक्षररूप महाप्रकाश को प्राप्त करानेवाला है। और व्यवहारमें हेयोपादेय अर्थात् त्याज्य क्या है और ग्रहण करने योग्य क्या है ? इसका विशाल ज्ञान देनेवाला है । यहाँ इतना ही कहना पर्याप्त है ।
लेख अच्छी तरह समझमें आ जाय इस लिए लेखकी भूमिका लिखकर प्रतिदिन हजारों घरोंमें होनेवाली ज्ञानकी आशातनाके प्रति प्रजाका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ। क्योंकि यह प्राथमिक अनिवार्य आवश्यकता है। अतए इस लेख लिखा है तब सभी लोग ध्यान दें, उसमें भी विशेष तो जैन वन्धु पूर्णतया ध्यान दें ।
यह प्रारंभिक भूमिका हुई अब मूल लेखका प्रारंभ होता है ।
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