Book Title: Prastavana Sangraha
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Muktikamal Jain Mohanmala

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Page 792
________________ GAR पुष्प तरीके वि. सं. २०१८मां 'ऐन्द्रस्तुतिचतुर्विंशतिका'नुं प्रकाशन थयु. आगमप्रभाकर पू. मुनिश्री पुण्यविजयजी संपादित ए ग्रंथ पूर्वे भावनगरथी प्रकाशित थयो हतो परंतु एक अपूर्ण प्रतने आधारे एनुं संपादन थयुं हतुं. पूज्यश्रीने वीजी संपूर्ण प्रत मळी आवतां पुनःसंपादित थयेलो ग्रंथ सुप्रसिद्ध निर्णयसागर प्रेसमां सुंदर रीते छपावीने प्रगट करवामां आव्यो. त्यारथी आज सुधीमा उपाध्यायजीना ग्रंथप्रकाशननी यात्रा चोवीशेक ग्रंथो (६ पुस्तको) सुधी पहोंची छे. वि. सं. २०३८थी ए प्रवृत्ति स्थगित थई छे, परंतु ते ४ दरम्यान वि. सं.२०१७मां एक नवीन प्रकाशन कर्यु ते उपाध्यायजीना स्वहस्तलिखित ग्रंथोना पहेला-छेल्ला पानांनी फोटोस्टेट नकलोना आल्बमनु. आगमप्रभाकर मुनिश्री पासेथी प्राप्त थयेली तथा एमनी अने पू.8 मुनिश्री रमणीकविजयजी साथे देवशाना पाडामां विमलगच्छना प्राचीन भंडारमा जोवा मळेली प्रतिओनु ए परिणाम हतुं. पचासेकनी संख्यामां तैयार थयेला आल्बमो जुदा जुदा भंडारो अने केटलीक रस धरावती व्यक्तिओ सुधी पहोंच्या छे. उपाध्यायजीना साहित्यना विषयमा हजु एक वे कामो मनमा विचारेला पड्यां छे. वि. सं. २०२०नी आसपास उपाध्यायजीना ग्रंथोनी हस्तप्रतो कया-कया भंडारमा छे तेनी माहितीनो एक संग्रह को हतो, जे एनुं संशोधन करवा प्रवृत्त थनारने मार्गदर्शक वनी शके. ए यादीमा वहु थोडा भंडारोनी माहिती दाखल करवानी वाकी रही छे, ते उपरांत आजे उपाध्यायजीना घणा ग्रंथो प्रकाशित थई चूक्या छे त्यारे एनी उपयोगिता केटली एवो प्रश्न पण थाय छे. “उपाध्यायजी एक स्वाध्याय' ए शीर्षकथी एक ग्रंथनुं आयोजन विचारेलुं अने केटलीक सामग्री संगृहीत करेली. पण हवे मारूं ८२मुं वर्ष चाले छे ने स्वास्थ्य कथल्यु छे तेथी प्रकाशनकार्य समेटी लेवानी स्थिति ऊभी थई छे. ___उपाध्यायजी महाराजना मारा हस्तकना अप्रगट ग्रंथो प्रगट करवानुं जे कार्य निर्धायु हतुं ते आ ग्रंथना प्रकाशन साथे लगभग समाप्त थाय छे. आ प्रसंगे आजथी चाळीश वर्ष पूर्वे स्थपायेली संस्थाना ट्रस्टीओए तथा कार्यकरोए तेमज मुंबईना जैन संघोना ट्रस्टोए अने मुंबईना सुखी अग्रणी सद्गृहस्थोए उपाध्यायजीनुं जैन संघ पर जे ऋण छे ते फेडवा माटे जे साथ, सहकार ने फाळो आप्यो छे ते माटे ते सो पण अभिनंदनना अधिकारी छे.. उपरांत, एक या वीजी रीते मने सहायक बननारा अमारा संघाडाना साधुओ, मारा शिष्यो-प्रशिष्यो, साध्वीजीओ, सुश्रावको अने सुश्राविकाओ वगेरेनो पण हुं आभारी छु. एमांय सतत मारी साथे रही वधी । रीते मारी सारसंभाळ लेनार तथा मारा साहित्यकार्यना साथी मारा विनीत शिष्यो पंन्यास श्री ६ वाचस्पतिविजयजी, तथा मारी प्रवृत्तिओमां उमळकाथी सहायभूत थनार भक्तिवंत मुनिश्री जयभद्रविजयजीहुं विशेष भावे स्मरण करूं छु. मारा सदा आराध्य दर्भावती (डभोई - उपाध्यायजी महाराजनी स्वर्गवासभूमि) मंडन श्री लोढण पार्श्वनाथ भगवान, श्री शामळा पार्श्वनाथ भगवान, भगवती मा भारती, प्रगटप्रभावी माता पद्मावती देवी | आदि शासनदेवो तथा मारा कार्यमा प्रेरक वननारा मारा जीवनोद्धारक गुरुदेवो प.पू. आचार्य श्री विजयप्रतापसूरीश्वरजी महाराज तथा युगदिवाकर प.पू. आचार्यश्री धर्मसूरिजी महाराजने मारां वंदन पाठवी, एक महापुरुषना साहित्यसर्जननी सेवा करवानी जे तक मने महान पुण्योदये प्राप्त थई ते बदल गौरव : अनुभव ९ अने आवी कल्याणकारी श्रुतसेवा जनमोजनम प्राप्त थती रहे एवी भावना भावु छु.

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