Book Title: Prastavana Sangraha
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Muktikamal Jain Mohanmala
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NAGAR
जवाबदारी उत्साहपूर्वक पोताने माथे लीधी अने हुं चिंतामुक्त थयो. काम जरा कपकै हतुं केमके ग्रंथोना है आदि तेमज अंत भागो गुजराती तथा हिंदी अनुवाद साथे आपवाना हता अने उपाध्यायजीना ग्रंथोनो अनुवाद, तेमांना तत्त्वपरामर्श तथा ऊंची कोटिनी काव्यमयताना कारणे घणी सज्जता मागे एम हतो. परंतु जयंतभाईनी कार्यनिष्ठा अनन्य छे. एमने हाथे कोई काचं काम न थाय एवी एमनी प्रतिष्टा छे. कामने उत्तम रीते पार पाडवा माटे जे कर, घटे ते सघळु ए करी छूटे. एमणे उपाध्यायजीना ग्रंथोना आदि तेमज अंत भागोना अनुवाद कराव्या, पोते जहमतपूर्वक तपास्या, शंकास्थानो माटे अधिकारी विद्वानोनी
सहाय लीधी अने आखीये सामग्री के विद्वान आचार्यश्रीओ- प्रद्युम्नसूरिजी अने शीलचंद्रसूरिजीनी नजर १ नीचेथी पसार थाय एवी गोठवण करी. सामग्रीमा जे कंई पूर्ति करवी घटती हती ते पण एमणे करी. 3 आ ग्रंथनी संशोधन-संपादन कामगीरी केवी रीते थई एनी विगतवार माहिती एमना निवेदनमां आपवामां आवी छे.
विशिष्ट पद्धतिए तैयार थयेनुं आ जात, पुस्तक आपणे त्यां आ कदाच पहेतुं ज हशे.
जैन संघमां उपाध्यायजी महाराजना ग्रंथोना संपादन-संशोधनना प्रथम प्रशस्य प्रयत्ननो यश प्रायः | पूज्यपाद सूरिसम्राट श्री नेमिसूरीश्वरजी महाराजसाहेब तथा तेमना विद्वान पट्टधर न्यायसिद्धांतमहोदधि पूज्य १ श्री उदयसूरीश्वरजी महाराजसाहेवने फाळे जाय छे. आजे ए समुदायना वे विद्वान मुनिवरो आचार्यश्री ध्र प्रद्युम्नसूरिजी तथा आचार्यश्री शीलचंद्रसूरिजीए उपाध्यायजीनी अद्भुत शासनसेवा अने साहित्यसेवा प्रत्येना ,
आदरथी, अमारी विनंतीने स्वीकारीने आ ग्रंथना संपादन-संशोधनमा घणो महत्त्वनो फाळो आप्यो छे ते माटे तेमने खूबखूब धन्यवाद घटे छे. आ ग्रंथना प्रकाशन, कपर्क कार्य सुंदर रीते पार पाडवा माटे श्री * जयंतभाई कोठारी, एमनां सहकार्यकर ज्ञानाभ्यासी बहेनो अने एमने सहायरूप थनार सहु कोईने पण है 8 अंतरना अभिनंदन अने शुभेच्छा पाठवू छु.
ए आनंदनी वात छे के डभोईमा उपाध्याय श्री यशोविजयनी स्मृतिमा सारस्वतसत्रनी उजवणी पष्ठी तेमना ग्रंथोनां प्रकाशनो थयां, आपणी साधुसंस्थामां खूब जागृति आवी, नव्य न्यायचें अध्ययन वध्यु अने। उपाध्यायजी महाराज माटे कांई ने कांई करी छूटवानी भावनाओ पण जागी. अमे ज्यारे उपाध्यायजीना
ग्रंथो प्रगट करवानुं विचार्यु त्यारे मारा श्रद्धेय आगमप्रभाकर इ. मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराज तथा ई 8 उपाध्यायजीना ग्रंथोना प्रशंसक विद्वानोनी, एक प्रश्नोत्तरी मोकली, सलाह लीधेली. उपाध्यायजीना ग्रंथो:
अनुवाद साथे प्रगट करवानु मनमा हतुं पण ए वावतनो सौए निषेध कर्यो. कारणके एमना नव्य न्यायनी शैलीए लखायेला ग्रंथोनो अनुवाद करवानुं काम घणुं अघळं बनी जाय. एनो प्रमाणभूत अनुवाद करनारा | क्यांथी मळे ? आथी उपलब्ध थयेलां ग्रंथो ज संपादित करीने प्रकाशित करवानुं योग्य ठयु अने ए प्रमाणे ग्रंथो प्रगट पण थई गया. फक्त 'स्तोत्रावली' वगेरे एक वे ग्रंथो अनुवाद साथे छपाया छे. आजे हवे । उपाध्यायजीना केटलाक महत्त्वना ग्रंथो अनुवाद साथे प्रगट थई रह्या छे. ए घणा आनंदनी वात छे.
वि. सं. २०१३मां 'श्री यशोविजय स्मृति ग्रंथ' नुं प्रकाशन थया पछी वि. सं. २०१४मां, उपाध्यायजीनां ग्रंथोना प्रकाशन अर्थे श्री यशोभारती जैन प्रकाशन समितिनी स्थापना करवामां आवी. ए वरसे हुं मुंबई कोटना उपाश्रयमा हतो त्यां प्रेसकोपी करवा वगेरे कार्योमा सहायक वनी शके तेवा वयोवृद्ध सुशिक्षित सुश्रावक श्री लक्ष्मीचंदभाई मने मळी गया अने प्रकाशनना कार्यने वेग मल्यो. समितिना प्रथम

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