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मेरे सहृदयी मित्र डो० रुद्रदेव त्रिपाठी ने अनुवादक, अनुवाद करके संशोधक तथा सम्पादक के रूप में मुद्रणादि का समस्त उत्तरदायित्वसे कर जो सहयोग दिया है, तदर्थ वे सचमुच अभिनन्दन के अधिकारी हैं ।
उपाध्यायजी के द्वारा विरचित 'काव्यप्रकाश' की टीका का हिन्दी अनुवाद सहित मुद्रण कार्य, प्रूफसंशोधक आदि भी वे ही बड़ी लगन से कर रहे हैं। कुछ महीनों में वह कृति भी प्रकाशित हो जाएगी।
उपाध्यायजी के ग्रन्थों का वर्षों से अपूर्ण पड़ा हुआ कार्य मेरे धर्मोही - धर्मबन्धु श्री चित्तरंजन to शाह तथा धर्मात्मा सरला बहिन ने 'माउण्ट यूनिक ' में स्थित उनके अनुज बन्धु हेमन्तभाई के स्थान की हमें सुविधा दी और बाहर के किसी भी व्यक्ति के आने पर कड़ा प्रतिबन्ध रखकर भू-गर्भ-वास के समान ही मैं वहाँ रहा। नीरव शान्ति तथा दिन के दस-दस बारह बारह घण्टे तक कार्य करके उपाध्यायजी की रचनाओं की प्रेसकोपियाँ संशोधन के लिए जो अपूर्ण थीं तथा कुछ को अन्तिम रूप देना था उन सभी को व्यवस्थित रूप दिया ।
इस 'स्तोत्रावली' का अन्तिम व्यवस्थापन भी माउण्ट यूनिक स्थान में ही किया गया। दस वर्ष का कार्य जो प्रख्यात स्थानों में मुझ से सम्पन्न नहीं हो सका था उसे प्रस्तुत स्थान में चारपांच मास में पूर्ण कर सका इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेख मैं प्रकाशित होनेवाले अन्य ग्रन्थ के निवेदन में करना चाहता हूँ। अभी तो मैं अपने इन उपर्युक्त भक्तिशील, धर्मात्मा, सुश्राविका - सरला बहन, कोकिला बहन, श्री विरलभाई तथा घर के शिरच्छत्र धर्मात्मा सुश्रावक श्री दामोदरभाई और उनकी धर्मपत्नी समाजसेविका धर्मात्मा स्व० श्री रम्भा बहन आदि कुटुम्ब परिवार का बहुत ही आभारी हूँ । ये सभी श्रुतसेवा के इस कार्य में अनेक प्रकार से सहायक बने तदर्थ धन्यवाद देता हूँ तथा देव, गुरु और धर्म के प्रति ऐसा भक्तिभाव सदैव बना रहे ऐसी शुभकामना करता हूँ ।
स्तोत्र के अनुवाद का कार्य अत्यन्त कठिन है। अनुवाद की पद्धति एवं अभिव्यक्ति भी पृथक्पृथक होती है। यहाँ एक पद्धति का अनुवाद सरल करते हुए अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। अतः अनुवाद में जो भी त्रुटियाँ रही हो उन्हें पाठकगण सुधार कर पढ़ें तथा संस्था को भी सूचित करें । अन्त में सभी आत्माएँ इन स्तोत्रों का सहृदयतापूर्वक अध्ययन-अध्यापन करके आध्यात्मिक प्रकाश प्राप्त करें यहीं मङ्गल कामना I
डो० बालाभाई नाणावटी होस्पीटल
विलेपारले (बन्बई)
दि० १३-४-७५
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— मुनि यशोविजय