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छपवानेके लिये दी । काम शीघ्रतासे हो, इसके लिये आधा मैटर सोनगढ़-कहान मुद्रणालयमें और आधा मैटर अहमदावाद - भरत प्रेसमे दिया। लेकिन मेरा उद्देश्य सफल नहीं हुआ, क्योंकि प्रस्तावना आदिके लेखनका हिन्दी अनुवाद करनेका कार्य शेष था। गुजरातीका हिन्दी अनुवाद करनेवाले शिक्षकके अभाव के कारण छपाये गये ग्रन्थका प्रकाशन शीघ्र नहीं हो सका। बहुत बहुत कठिनाईयाँ तथा अवरोधों के होते हुए भी इस कार्यको किनारे तक पहुँचाया और आज यह सभीके सद्भाग्यसे ७०० पृष्ठका ७५ चित्रोंके साथ विशाल विशिष्ट ग्रन्थ प्रकाशित हुआ और जैनविद्यार्थियोंको ऐसा महान् ग्रन्थ पट्नेका अवसर प्राप्त हुआ, यह हमारे लिये तथा सभीके लिये बहुत आनन्दका विषय है, ओर संघके लिये सभीके लेये महान् गौरवकी बात है।
गुजरातीसे जो इसका हिन्दी अनुवाद किया गया है, वह हिन्दीभाषा की दृष्टिसे उच्च स्तरका नहीं तीत होगा किन्तु गुजराती शिक्षकोंसे हिन्दी कराने में कुछ शैथिल्य तो स्वाभाविक रूपसे प्रतीत होगा
हो ।
जैन शासनन श्री श्रेणिकभाई कस्तुरभाईकी प्रेरणासे अहमदाबाद जैन बोर्डिंग ट्रस्ट तरफसे, भक्तिवन्त धर्मात्मा श्री लक्ष्मीचन्दभाई तथा श्री देवीलाल आदिकी प्रेरणासे बेंगलार ट्रस्टने तथा बम्बईकुन्जेन र उस्ट तरफसे यह प्रकाशन कार्यमें अच्छी तरहसे आर्थिक सहाय प्राप्त हुई है ये हा हमारी संस्था आभार मानती है।
अन्तम हमारे छोटे-बडे कार्योंमें सहकार देनेवाले विनयवन्त पं. मुनिश्री वाचस्पतिविजयजी तथा भक्तिवन्त मुनि श्री जयभद्रविजयजी तथा हिन्दी लेख - मैटर लिखना और प्रुफ देखना, गुजरातीका हिन्दी करना तथा मुद्रण सम्वन्धी अन्य व्यवस्थामें पूरे भक्तिभावसे साथ - सहकार देकर श्रुतभक्तिका लाभ विनयवन्तासाध्वी श्री पुष्पयशाश्रीजीका सुविनीत उत्साही शिष्या सा. श्री पुनितयशाश्रीजी तथा एलची जैसे काम करनेवाला भक्तिवन्त भाई श्री रोहितभाई आदि बहुत धन्यवादाह है।
सोनगढ़ - कहान मुद्रणालय के संचालक धर्मात्मा श्री ज्ञानचन्दजी जैन तथा अहमदाबाद भरतप्रेस के मालिक धर्मात्मा श्री कांतिभाई सपरिवार भी धन्यवादार्ह है ।
इस ग्रन्थका अध्ययन सभी व्यक्ति अधिकाधिक संख्यामें करें और आत्मकल्याणकी साधनामें उपयोगी बनाएँ यही प्रार्थना है।
ग्रन्थकारके आशय से विरूद्ध अथवा शास्त्रविरूद्ध कुछ भी लिखनेमें आ गया हो तो, उसके लिये
क्षमायाचना !
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