________________
और 1971 में आप जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष भी रहे।आप अंग्रेजी, कन्नड़, मराठी, गुजराती, हिन्दी, जर्मन, फ्रेंच भाषाओं में प्रवीण विद्वान् थे। ___प्रो. उपाध्ये की प्रसिद्ध सम्पादित पुस्तकों में प्रवचनसार, कुवलयमाला, परमात्मप्रकाश, धूर्ताख्यान, वृहत्कथाकोश, वरांगचरित, पंचविंशति, आदि प्रमुख हैं, जिनके सम्पादन-अनुवाद और प्रस्तावनाओं ने विद्वानों को आकर्षित किया है। डॉ. ए. एन. ने सैकड़ों शोधपत्र लिखे हैं, जो डॉ. उपाध्येज-पेपर्स के नाम से बाद में प्रकाशित हुए हैं। डॉ. ए.एन. उपाध्ये देश-विदेश की कई अकादमिक संस्थाओं
और सम्मेलनों के अध्यक्ष रहे। भारतीय ज्ञानपीठ की मूर्तिदेवी ग्रंथमाला के वर्षों तक जनरल एडीटर के रूप में आपने कार्य किया। प्रो. उपाध्ये ने 1971 में केनबरा, 1973 में पेरिस, जर्मनी और इंग्लैण्ड तथा 1974 में बेल्जियम की भी यात्राएँ कर वहाँ पर विद्वत्तापूर्ण भाषण दिये। मैसूर से लौटकर 8 अक्टूबर 1975 को प्रो. उपाध्ये का कोल्हापुर में देहावसान हुआ। किन्तु आपकी विद्वत्ता एवं सज्जनता आज भी जीवन्त है। 58. उवसग्गहर थोत्त ___पाँच गाथाओं का यह स्तोत्र जैनों में बहुत लोकप्रिय है। णमोकार-मंत्र के बाद इसका ही नंबर आता है। इसमें विषधरस्फुलिंग मंत्र (ओं नमिऊण पास विसहर वसह जिण फुलिंग) का समावेश माना जाता है। यह स्तोत्र अनेक बार प्रकाशित हो चुका है। हर्मन याकोबी द्वारा संपादित, अंग्रेजी अनुवाद सहित, कल्पसूत्र 1991 सप्तस्मरण के साथ जिनप्रभसूरि सिद्धचन्द्रगणि और हर्षकीर्तिसूरि की व्याख्याओं सहित देवचन्द लालाभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रन्थमाला की ओर से सन् 1933 में बंबई से प्रकाशित है। हीरालाल रसिकदास कापड़िया द्वारा उवंसग्गहरथोत्त एक अध्ययन मोहनलाल जी ग्रंथ बंबई 1964 से प्रकाशित है। 59. उपासकदशांग (उवासगदसाओ)
अर्धमागधी आगम ग्रन्थों में उपासकदशांग का सातवाँ स्थान है। यह सूत्र धर्मकथानुयोग के रूप में प्रस्तुत हुआ है। भगवान् महावीर युग के दस उपासकों के पवित्र चरित्र का इसमें वर्णन है, जिन्होंने प्रभु महावीर के धर्म उपदेशों से प्रभावित
प्राकृत रत्नाकर 039