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उतार-चढ़ाव को दर्शाता है। सामाजिक दृष्टि से पुरातन मान्यताओं, प्रवृत्तियों, प्रथाओं एवं अपराधों का भी परिचय प्राप्त होता है 378. विमलसूरि
पउमचरियं ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके कर्ता नाइलकुल वंश के विमलसूरि थे जो कि राहु के प्रशिष्य और विजय के शिष्य थे। याकोबी ने इसे तृतीय शताब्दी की रचना माना है और डॉ. के. आर. चन्द्र ने इसे वि. सं. 530 की कृति माना है। कुवलयमाला की प्रस्तावना गाथाओं में विमलांक विमलसूरि को स्मरण किया गया है और उनकी अमृतमय सरस प्राकृत' की प्रशंसा की गई है। 379. विवाहपडल (विवाह पटल)
विवाहपडल के कर्ता-अज्ञात हैं। यह प्राकृत में रचित एक ज्योतिषविषयक ग्रंथ हैं, जो विवाह के समय काम में आता है। इसका उल्लेख निशीथविशेषचूर्णि में मिलता है।
विवाहपटल नाम के एक से अधिक ग्रन्थ हैं। अजैन कृतियों में शारंगधर ने शक सं. 1400 (वि. सं.1435) में और पीताम्बर ने शक सं. 1444 (वि.सं. 1579) में इसकी रचना की है। जैन कृतियों में विवाहपटल के कर्ता अभयकुशल या उभयकुशल का उल्लेख मिलता है। इसकी जो हस्तलिखित प्रति मिली है उसमें 130 पद्य हैं, बीच-बीच में प्राकृत गाथाएँ उद्धृत की गई हैं। इसमें निम्नोक्त विषयों की चर्चा है।
योनि-नाडीगणश्रेव स्वामिमित्रौस्तथैव च।
जुन्जा प्रीतिश्रव वर्णश्रव लीहा सप्तविधा स्मृता ॥ . नक्षत्रा,नाडीवेधयन्त्रा, राशिस्वामी, ग्रहशुद्धि, विवाहनक्षत्र, चन्द्र सूर्य स्पष्टीकरण, एकार्गल, गोधूलिकाफल आदि विषयों का विवेचन है। यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है। 380. विविधतीर्थकल्प (तीर्थ-संबंधी)
विविधतीर्थ अथवा कल्पप्रदीप जिनप्रभसूरि की दूसरी रचना है। जैसे
प्राकृत रत्नाकर 0323