________________
उन्हें वैदिक साहित्य में व्रात्य कहा गया है। यही व्रात्य श्रमण संस्कृति के पोषक कहे गये हैं। इनका सामाजिक एवं राजनैतिक संगठन भी उदीच्या के निवासियों से भिन्न था। पुरातत्त्ववेत्ता डॉ. जयचन्द विद्यालंकार ने स्पष्ट किया है कि इन व्रात्यों की शिक्षा-दीक्षा की भाषा प्राकृत थी, उनकी वेषभूषा परिष्कृत न थी, वे मध्यप्रदेश के आर्यों के संस्कार नहीं करते थे तथा ब्राह्मणों के बजाय अर्हन्तों (सन्तों) को मानते और चेतियों (चैत्यों) को पूजते थे। ऋग्वेद में बताया है कि जो पृथ्वीतल के मूर्धास्थानीय हैं अहिंसक हैं, जो अपने यश और व्रतों की आद्रोह से रक्षा करते हैं, वे व्रात्य हैं। आचार्य श्री विद्यानन्द जी ने अपने एक लेख में यह निष्कर्ष दिया है कि व्रात्य ही भारत के मूल निवासी और भारत की आद्य संस्कृति के प्रतिष्ठाता रहे हैं।
इसी प्राच्या के भूभाग में मगध साम्राज्य विकसित हुआ। भगवान् महावीर और बुद्ध इसी भूभाग में जन्में। उन्होंने प्राच्या और उससे विकसित प्राकृत मागधी को अपने उपदेशों का आधार बनाया। उदीच्या की परिनिष्ठित भाषा और वहाँ की मध्यदेश से पूर्व में लोगों का आना-जाना बना हुआ था। व्यापारिक सम्पर्क थे। अतः शौरसेनी प्राकृत और मागधी प्राकृत में क्षेत्रीय प्रभाव को छोड़कर प्रायः समानताएँ रही होंगी। इसीलिए तत्कालीन प्राकृत सबके समझ में आ जाती थी। इस समान तत्व को प्रकट करने के लिए ही और सर्वगाह्य प्राकृत भाषा के प्रतिनिधित्व के लिए सम्भवतः अर्धमागधी भाषा के स्वरूप और नामकरण को बाद में प्रस्तुत किया गया है। महापुरुष द्वारा प्रयुक्त होने के कारण, मिश्रित भाषा होने के कारण और धार्मिक श्रद्धा के कारण अर्द्धमागधी आर्य प्राकृत, देवभाषा आदि नामों से प्रचारित की गयी। अन्यथा वैदिक युग से लगभग ईसा की प्रथम शताब्दी तक दो ही प्राकृत भाषाएँ थीं- शौरसेनी (मध्यदेशीय) एवं मागधी (प्राच्या)। इन्हीं से अन्य प्राकृतों का विकास हुआ है। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री जर्मन विद्वान् होएनले ने सभी प्राकृत बोलियों को दो भागों में बांटा है। एक को उन्होंने शौरसेनी प्राकृत कहा है और दूसरी को मागधी प्राकृत। भारतीय भाषाओं का सर्वेक्षण करने वाले विद्वान् ग्रियर्सन ने भी इस मत का समर्थन किया है और कहा है कि इन दोनों के (शौरसेनी एवं मागधी) मेल से विकसित भाषा को अर्धमागधी सामान्य तत्त्व तो थे ही। अतः वह प्राच्या मध्यदेशीय विभाषा से मिलती जुलती 332 0 प्राकृत रत्नाकर