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प्राचीन ग्रन्थ षट्खण्डागम धवलाटीका के भाग 6 से 16 तक के सम्पादनअनुवाद के कार्य में सहयोग किया। आपके द्वारा सम्पादित की हुई प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- तिलोयपण्णत्ति भाग (1, 2), जंबूदीवपण्णत्ति आत्मानुशासन, कथाकोश, ज्ञानार्णव आदि। जैन लक्षणावली भाग (1, 2, 3) प्रसिद्ध जैनसिद्धान्त का कोशग्रन्थ है। आपने श्रावकप्रज्ञप्ति, ध्यानशतक, ध्यानस्तव और षटखण्डागमपरिशीलन पुस्तकें भी विद्वत् समाज को दी हैं। 398. शिलालेखीय प्राकृत
शिलालेखी प्राकृत के प्राचीनतम रूप अशोक के शिलालेखों में प्राप्त होते हैं। ये शिलालेख ई.पू. 300 के लगभग देश के विभिन्न भागों में अशोक ने खुदवाये थे। इससे यह स्पष्ट है जन समुदाय में प्राकृत भाषा बहु प्रचलित थी और राजकाज में भी उसका प्रयोग होता था। अशोक के शिलालेख प्राकृत भाषा की दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण हैं ही, वे तत्कालीन संस्कृति के जीते जागते प्रमाण भी हैं। अशोक ने छोटे-छोटे वाक्यों में कई जीवन-मूल्य जनता तक पहुँचाए हैं। उसका संदेश है
प्राणानांसाधु अनारंभो,अपव्ययता अपभंडता साधु।- (तृतीय शिलालेख) -प्राणियों के लिए की गई अहिंसा अच्छी है, थोड़ा खर्च और थोड़ा संग्रह अच्छा है।
सवपासंडा बहुसुता च असु, कलाणागमा च असु - (द्वादस शिलालेख) (सभी धार्मिक सम्प्रदाय एक दूसरे को सुनने वाले हों और कल्याण का कार्य करने वाले हों)
सम्राट अशोक के बाद ईसा की चौथी शताब्दी तक प्राकृत में शिलालेख लिखे जाते रहे हैं, जिनकी संख्या लगभग दो हजार है। खारवेल का हाथीगुंफा शिलालेख उदयगिरि एवं खण्डगिरि के शिलालेख तथा आन्ध्र राजाओं के प्राकृत शिलालेख साहित्यिक और इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। प्राकृत भाषा के कई रूप इनमें उपलब्ध हैं। खारवेल के शिलालेख में उपलब्ध णमो अरहताणं णमो सवसिधाणं पंक्ति में प्राकृत के नमस्कार मन्त्र का प्राचीन रूप प्राप्त होता है। सरलीकरण की प्रवृत्ति का भी ज्ञान होता है। भारतवर्ष (भरधवस) शब्द का 340 0 प्राकृत रत्नाकर