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मागधी व शौरसेनी का प्रयोग भी मिलता है। भाष्यों का लेखन काल लगभग ई. सन् की चौथी-पाँचवीं शताब्दी माना गया है। भाष्यकारों में संघदासगणि क्षमाश्रमण तथा जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण प्रमुख हैं। मुख्य रूप से जिन ग्रन्थों पर भाष्यों की रचना हुई हैं वे निम्न हैं- 1. आवश्यक 2. दशवैकालिक 3. उत्तराध्ययन 4. बृहत्कल्प 5. पंचकल्प 6. व्यवहार 7. निशीथ 8. जीतकल्प 9.ओघनियुक्ति 10. पिण्डनियुक्ति।
प्राचीन श्रमण जीवन व संघ के इतिहास व परम्पराओं को जानने की दृष्टि से भाष्य साहित्य अत्यन्त महत्त्वूपर्ण है। इस साहित्य में अनेक प्राचीन अनुश्रुतियों लौकिक कथाओं और मुनियों के परम्परागत आचार विचार की विधियों का प्रतिपादन हुआ है। विशेषावश्यकभाष्य में जैन आगमों में वर्णित, ज्ञान प्रमाण नयनिक्षेप स्याद्वाद कर्मसिद्धान्त आचार आदि अनेक विषयों का विवेचन अत्यन्त सहज रूप से हुआ है। बृहत्कल्प-लघुभाष्य में श्रमणों के आचार-विचार का तार्किक दृष्टि से सूक्ष्म विवेचन किया गया है। यह भाष्य ग्रन्थ तत्कालीन सामाजिक धार्मिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों की झाँकी भी प्रस्तुत करता है। निशीथभाष्य में अनेक सरस एवं मनोरंजक कथाओं के माध्यम से विधि श्रमणाचार का निरूपण हुआ है। व्यवहारभाष्य में श्रमण के आचार-व्यवहार तप आलोचना, प्रायश्चित्त, बाल दीक्षा की विधि आदि के अतिरिक्त प्रसंगवश विभिन्न देशों की रीति-रिवाजों आदि का भी वर्णन है। 325. भुवनसुन्दरी कथा
महासती भुवनसुन्दरी की चमत्कारपूर्ण कथा को लेकर प्राकृत में एक विशाल रचना की गई जिसमें 8111 गाथाएँ हैं। इन गाथाओं का परिमाण बृहटिप्पनिका में 10350 ग्रन्थान बतलाया गया है। इसकी रचना सं. 975 में नाइलकुल के समुद्रसूरि के शिष्य विजय सिंह ने की है। इसकी प्राचीनतम प्रति सं. 1365 की मिली है। 326. मज्झिमखंड
कुछ विद्धानों की मान्यता है कि मज्झिमखंड जिसे द्वितीय खंड भी कहा गया है, वसुदेवहिंडि का दूसरा खंड है। कहा जा चुका है कि मज्झिमखंड के 2800 प्राकृत रत्नाकर