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इस चरित की तथा अन्य चरित ग्रन्थों की रचना की थी उनमें केवल चन्दप्पहचरियं
और अपभ्रंश में णेमिणाहचरिउ उपलब्ध हैं। तीसरा मल्लिनाथ चरित भुवनतुंगसूरि कृत 500 ग्रन्थाग्र प्रमाण जैसलमेर के भण्डारों में ताड़पत्र पर लिखित है तथा चतुर्थ मल्लिनाथ चरित 105 प्राकृत गाथाओं में अज्ञातकर्तृक है।
331. महाकवि स्वयम्भू ___अपभ्रंश के आदि कवि के रूप में स्वयम्भूको स्मरण किया जाता है। अब तक उपलब्ध अपभ्रंश रचनाओं में स्वयंभू की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। पउमचरिउ, रिट्ठनेमिचरिउ एवं स्वयंभूछन्द। ये उनकी काव्य-प्रतिभा का प्रतिनिधित्व करती हैं। यद्यपि स्वयंभू ने अपने ग्रन्थों में अपभ्रंश के पूर्ववर्ती कवियों चतुर्मुख, ईशान आदि का उल्लेख किया है, किन्तु इनके साहित्य आदि का पूरा परिचय उपलब्ध न होने से उनकी काव्य-प्रतिमा का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। अतः न केवल दक्षिण भारत के अपभ्रंश के कवियों में अपितु सम्पूर्ण अपभ्रंश साहित्य में स्वयम्भू का योगदान विशेष अर्थ रखता है। स्वयम्भू अपभ्रंश के पहले महाकवि हैं, जिन्होंने राम और कृष्ण-कथा को प्रबन्ध-काव्यों का विषय बनाया है। जिस प्रकार संस्कृत और प्राकृत की साहित्यिक कृतियों का शुभारम्भ रामकथा से होता है उसी प्रकार स्वयम्भू ने अपभ्रंश साहित्य में भी पउमचरिउ नामक पहला प्रबन्ध काव्य लिखा है। अपभ्रंश में कृष्ण और पाण्डव-कथा को सर्वप्रथम काव्य रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय स्वयम्भू को है। साहित्य एवं भाषा के क्षेत्र में स्वयम्भू के योगदान को देखते हुए उन्हें अपभ्रंश का युग-प्रवर्तक कवि कहा जा सकता है। उन्होंने भारतीय काव्य की अनेक कथाओं और अभिप्रायों को विकसित किया है। अपभ्रंश जैसी लोक भाषा के स्वरूप को सुस्थिर कर उसे महाकाव्य के उपयुक्त बनाया है तथा संवादतत्त्वों एवं सूक्तियों आदि से उसे समृद्ध किया है। डॉ. सकटा प्रसाद उपाध्याय ने कवि स्वयम्भूनामक पुस्तक में विशेष अध्ययन प्रस्तुत किया है।
स्वयम्भू के जन्म-स्थान एवं जन्मकाल सुनिश्चित नहीं हैं, किन्तु उनकी रचनाओं से ज्ञात होता है कि वे यापनीय संघ से सम्बन्धित थे। कर्नाटक उनकी
प्राकृत रत्नाकर 0 285