________________
वज्जालग्ग नाम एक विशिष्ट अर्थ का द्योतक है । 'वज्जा' एक देशी शब्द है, जिसका अर्थ है अधिकार या प्रस्ताव तथा 'लग्ग' का अर्थ समूह है। इस दृष्टि से इस मुक्तककाव्य में एक विषय से सम्बन्धित गाथाओं के समूह का संकलन एक 'वज्जा' के अन्तर्गत किया गया है। पूरे काव्य में 995 गाथाएँ संकलित हैं, जो 95 वज्जाओं में विभक्त हैं । कवि जयवल्लभ के अनुसार नाना कवियों द्वारा विरचित श्रेष्ठ गाथाओं का संकलन कर उन्होंने इस काव्य की रचना की है ।
विविध सुभाषितों का संकलन करने वाला यह काव्य-ग्रन्थ कई अर्थों में प्राकृत मुक्तक काव्य गाथासप्तशती की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है । गाथासप्तशती में शृंगार एवं सौन्दर्य चित्रण से सम्बन्धित गाथाओं का समावेश अधिक है। लेकिन वज्जलग्ग में कवि जयवल्लभ ने व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर सामाजिक हितों पर अधिक बल दिया है। उन्होंने मानवता के प्रकाश में विविध जीवन मूल्यों को इसमें प्रतिष्ठापित करने का प्रयत्न किया है । शृंगार के साथ-साथ सत्प्रेरणा देने वाले परोपकार, मित्रता, साहस, प्रेम, स्नेह, धैर्य, उदारता, कृतज्ञता, विनय, क्षमा जैसे नैतिक मूल्यों से सम्बन्धित मुक्तकों का समावेश कर कवि ने मानव मात्र के कल्याण का पथ-प्रदर्शित किया है। यथा - उपकार एवं कृतज्ञता को प्रतिष्ठापित करने वाली यह गाथा दृष्टव्य है -
वे पुरिसा धरइ धरा अहवा दोहिं पि धारिया धरणी ।
...
उवयारे जस्स मई उवयरिअं जो न पम्हुसइ ॥ (गा. 45 ) अर्थात् - यह पृथ्वी दो पुरुषों को ही धारण करती है, अथवा दो पुरुषों द्वारा ही यह पृथ्वी धारण की गई है। (पहला) जिसकी उपकार में मति है, तथा (दूसरा) जो किसी के द्वारा किये गये उपकार को नहीं भूलता है।
वस्तुतः कवि जयवल्लभ ने वज्जालग्ग में इन नैतिक मूल्यों की स्थापना कर अच्छे एवं बुरे जीवन को बहुत ही सहज एवं सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। स्वस्थ समाज के निर्माण में आदर्श नारी की अहम भूमिका होती है। इस बात का भी कवि को पूर्ण आभास था । नारी के गरिमामय उज्जवल चरित्र की कवि ने बड़ी ही मार्मिक प्रस्तुति की है । यथा -
प्राकृत रत्नाकर 309