________________
है। रोहिणीज्ञात विशुद्ध लौकिक कथा है, जिसमें ससुर अपनी चार बहुओं की परीक्षा लेकर सबसे बुद्धिमान बहू को कुटुम्ब का मुखिया नियुक्त करता है। मेघकुमार, द्रौपदी, मल्ली आदि के कथानक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों को लिए हुए हैं। तुम्बा, कुम्मे, मयूरी के अंडे, नंदीफल आदि कथाएँ रूपक शैली में हैं, जिनके द्वारा भव्य जीवों को प्रतिबोध दिया गया है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में 10 अध्ययन हैं। इनमें प्रायः स्वर्ग के इन्द्रों जैसे -चमरेन्द्र, असुरेन्द्र, चन्द्र, सूर्य, ईजोनादि की अग्रमहिषियों के रूप में उत्पन्न होने वाली पुण्यशाली स्त्रियों की कथाएँ हैं । इन कथाओं के माध्यम से संयम साधना की श्रेष्ठता का विवेचन किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में तत्कालीन समाज एवं संस्कृति का सुन्दर चित्रण हुआ
159.णायकुमारचरिउ
अपभ्रंश में नागकुमार के चरित से संबंधित सबसे प्रसिद्ध काव्य पुष्पदंत का नागकुमारचरित अथवा णायकुमारचरिउ है। कवि ने श्रुतपंचमी व्रत का महत्त्व समझाने के लिए यह कथा कही है। जयन्धर मगध के कनकपुर का राजा था। उसकी रानी विशालनेत्रा से श्रीधर नाम का पुत्र हुआ। एक व्यापारी सौराष्ट्र के गिरिनगर की राजकुमारी का चित्र लेकर आया। राजा उस पर मुग्ध हो गया। मंत्री को भेजकर उसने लड़की को बुलवाकर उससे विवाह कर लिया। नयी रानी का नाम पृथ्वीदेवी था। राजा रानियों के साथ जलक्रीड़ा के लिए गया। रास्ते में सौत की साज सज्जा देखकर नई रानी को बुरा लगा। वह जिनमन्दिर चली आई।स्तुति के पश्चात् मुनि का उपदेश सुनने लगी। मुनि ने उसके यशस्वी पुत्र होने की भविष्यवाणी की। इतने में राजा खोजता हुआ वहाँ आया। उसने पुत्र की बात उसे भी बता दी। दोनों पूजा करके घर चले गये। कुछ दिन पश्चात् उसने सपने देखे। समय पर उनके घर पुत्र ने जन्म लिया। राजा ने पुत्रजन्मोत्सव खूब धूम-धाम से मनाया। एक बार वह कुमार को लेकर मन्दिर गया, परन्तु किवाड़ नहीं खुले, लेकिन बालक के अंगूठे से छूते ही खुल गये। एक बार बच्चा वापी में गिर गया।
प्राकृत रत्नाकर 0127