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257. प्राकृत और पूर्वी भाषाएँ . पूर्वी भाषाएँ में इस समय कई भाषाएँ प्रचलित हैं। उनमें भोजपुरी, मगही, मैथिली, उडिया, बंगाली और असमिया प्रमुख हैं। इनमें कई विधाओं में साहित्य भी लिखा गया है। तथा ये बोल-चाल की भी भाषाएँ हैं। इन भाषाओं का विकास जिस क्षेत्र में हुआ है वहाँ प्राचीन समय से प्राकृत व अपभ्रंश बोली जाती रही है, जिसे मागधी व अर्धमागधी कहा जाता था। अतः स्वाभाविक रूप से ये भाषाएँ मागधी प्राकृत व अपभ्रंश से प्रभावित होकर विकसित हुई हैं। इनका व अपभ्रंश से क्या और कितना सम्बन्ध है, तुलनात्मक दृष्टि से कुछ साम्य-वैषम्य यहाँ दृष्टव्य है
प्राकृत और भोजपुरी - बिहार में बोली जाने वाली भाषाओं में भोजपुरी प्रमुख है। यद्यपि इसके बोलने वाले विभिन्न प्रान्तों में भी निवास करते हैं। भोजपुरी के व्याकरण एवं भाषा एवं वैज्ञानिक तत्त्वों के अध्ययन के आधार पर इस भाषा का सम्बन्ध अर्धमागधी प्राकृत के साथ अधिक दृढ़ होता है। इस भाषा में प्राकृत तत्त्वों की प्रचरता है। संक्रान्तिकाल के जो ग्रन्थ उपलब्ध हैं उनमें भी भोजपुरी के उदाहरण प्राप्त होते हैं। ध्वनितत्व की दृष्टि से भोजपुरी में प्राकृत के समान निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं -
(1) हस्व स्वरों का दीर्घ और दीघं का हस्व हो जाना । यथा- जीहा-जीभ, चक्क-चाक, आआस- अकास।
(2) ऋध्वनि का विभिन्न स्वरों में परिवर्तन । यथा-किसन-किसुन, मच्चुमिरतु, माय-मतरी।
(3) अकारण अनुनासिक प्रवृत्ति का पाया जाना। यथा- गाम-गाँव, महिषी - भइंस।
(4) विभिन्न वर्गों के स्थान पर दूसरे वर्गों का प्रयोग। यथा शकुन-सगुन, किस्सा-खिस्सा, केला-केरा।
भोजपुरी भाषा में ध्वनितत्व के अतिरिक्त व्याकरण की दृष्टि से भी प्राकृत की प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं। भोजपुरी के संज्ञारूपों की रचना पर प्राकृत का स्पष्ट
प्राकृत रत्नाकर 0213