________________
के देशों तक रहा है। इन कथाओं के कथाकार स्वयं सारे देश को अपने पदों से नापते रहे हैं। अतः उन्होंने विभिन्न जनपदों, नगरों, ग्रामों, वनों एवं अटवियों की साक्षात् जानकारी प्राप्त की है। उसे ही अपनी कथाओं में अंकित किया है। कुछ पौराणिक भूगोल का भी वर्णन है, किन्तु अधिकांश देश की प्राचीन राजधानियों, प्रदेशों, जनपदों एवं नगरों से सम्बन्धित वर्णन है, कौशल आदि जनपदों, अयोध्या, चम्पा, वाराणसी, श्रावस्ती, हस्तिनापुर, द्वारिका, मिथिला, साकेत, राजगृह आदि नगरों के उल्लेखों को यदि सभी कथाओं से एकत्र किया जाए तो प्राचीन भारत के नगर एवं नागरिक जीवन पर नया प्रकाश पड़ सकता है। आधुनिक भारत के कई भौगौलिक स्थानों के इतिहास में इससे परिवर्तन आने की गुंजाइश है। इस दिशा में कुछ विद्वानों ने कार्य भी किया है। किन्तु उसमें इन कथाओं की सामग्री का भी उपयोग होना चाहिए। जैन कथाओं के भूगोल पर स्वतन्त्र पुस्तक भी लिखी जा सकती है। 295. प्राकृत साहित्य में लोक जीवन
साहित्य का लोकजीवन में सम्बन्ध बनाये रखने के लिए प्राकृत की प्रत्येक अवस्था एवं विधा ने कार्य किया है। जनसाधारण के निश्चल हृदय से जो भाषा फूटती है उसमें और उसके दैनिक सरल व्यवहारों में कोई अन्तर होने की सम्भावना नहीं है। प्राकृत साहित्य के लोक सांस्कृतिक से ओत-प्रोत होने में एक कारण यह भी है कि प्रायः प्राकृत साहित्य का सम्बन्ध लोकधर्म से रहा है। यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि श्रमणधर्म ग्राम्य-जीवन प्रधान संस्कृति का पोषक रहा है। अतः उसके आचार्यों ने लोकभाषाओं को अपनाया। साहित्य में साधारण कोटि के चारित्रों को उभार कर अभिजात वर्ग का नायकत्व समाप्त किया तथा धार्मिक क्षेत्र में इन्द्र आदि देवताओं को तीर्थंकरों का भक्त बताकर मनुष्य जन्म को देवत्व से श्रेष्ठता प्रदान की। इतना ही नहीं, प्राकृत साहित्य के माध्यम से सभी लोककलाओं की सुरक्षा हुई है।
लोकसंस्कृति के अन्तर्गत यद्यपि अनेक तत्त्व समाहित होते हैं। प्राकृत साहित्य ने लोकसंस्कृति के इन प्रमुख तत्त्वों को उभारकर प्रस्तुत किया है- 1. लोकसाहित्य 2. लोकभाषा 3. लोकजीवन 4. लोकविश्वास 5. लोककला तथा
प्राकृत रत्नाकर 0 255