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उल्लेख है। यथा- चरक, चौरिक, चर्मसंडिक, मिच्छुण्ड, पाण्डुरंग, गौतम, गौवृती, गृहधर्मी, धर्म चिन्तक, अविरुद्ध, बुद्ध, श्रावक, रक्तपट आदि। व्याख्या साहित्य में जाकर इनकी संख्या और बढ़ जाती है। इन सबकी मान्यताओं को यदि व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया जाए तो कई धार्मिक और दार्शनिक विचारधाराओं का पता चल सकता है। संकट के समय में कई देवताओं को लोग स्मरण करते थे। उनके नाम इन कथाओं में मिलते हैं। आगे चलकर तो एक ही प्राकृत कथा में विभिन्न धार्मिक एवं उनके मत एकत्र मिलने लगते हैं। प्राकृत की इन कथाओं में लोकजीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध था। अतः इनमें लोक देवताओं और लौकिक धार्मिक अनुष्ठानों की भी पर्याप्त सामग्री प्राप्त है। 293. प्राकृत साहित्य में कला
आगमों की प्राकृत कथाओं कुछ कथा-नायकों की गुरूकुल शिक्षा के वर्णन हैं। मेघकुमार की कथा में 72 कलाओं के नामोल्लेख हैं। अन्य कथाओं में भी इनका प्रसंग आया है। श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री ने इन सभी कलाओं का परिचय अपनी भूमिका में दिया है। इन 72 कलाओं के अन्तर्गत भी संगीत, वाद्य, नृत्य, चित्रकला आदि प्रमुख कलाएँ हैं, जिनमें जीवन में बहुविध उपयोग होता है। इस दृष्टि से राजा प्रदेशी की कथा अधिक महत्त्वपूर्ण है। उसमें बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों का वर्णन है। टीका साहित्य में उनके स्वरूप आदि पर विचार किया गया है। ज्ञाताधर्मकथा में मल्ली की कथा, चित्रकला की प्रभूत सामग्री उपस्थित करती है। मल्ली की स्वर्णमयी प्रतिमा का निर्माण मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। स्थापत्यकला की प्रचुर सामग्री राजा प्रदेशी की कथा में प्राप्त है। राजाओं के प्रासाद वर्णनों एवं श्रेष्ठियों के वैभव के दृश्य उपस्थित करने आदि में भी प्रासादों एवं क्रीड़ाग्रहों के स्थापत्य का वर्णन किया गया है। इस सब सामग्री को एक स्थान पर एकत्र कर उसको प्राचीन कला के सन्दर्भ में जाँचा-परखा जाना चाहिए। यक्ष-प्रतिमाओं और यक्ष-गृहों के सम्बन्ध में तो जैन कथाएँ ऐसी सामग्री प्रस्तुत करती है, जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। 294. प्राकृत साहित्य में भूगोल
प्राकृत की इन कथाओं का विस्तार केवल भारत में ही नहीं, अपितु बाहर 2540 प्राकृत रत्नाकर