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ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना से ए कम्प्रेहेंसिव एण्ड क्रिटीकल डिक्शनरी ऑफ द प्राकृत लेंग्युएजेज नाम से एक विशाल कोश का निर्माण प्रारम्भ किया है। इसके चार भाग छप चुके हैं। यह प्राकृत अंग्रेजी कोश है। 309. प्राचीन अर्धमागधी की खोज में ___ पालि-प्राकृत के मनीषी स्व. प्रो. के. आर. चन्द्रा ने अर्धमागधी आगम ग्रन्थों के सम्पादन कार्यों को गति देने के लिए तथा प्राचीन अर्धमागधी व्याकरण के नियमों को निर्धारित करने के लिए प्राचीन अर्धमागधी की खोज में नामक पुस्तक लिखी है, जो 1991 में प्रकाशित हुई है। प्राचीन जैन आगमों पर शोधकार्य के लिए यह पुस्तक उपयोगी है। 310. प्राचीन छह कर्मग्रन्थ
कम्मविवाग (कर्मविपाक) कम्मत्थव (कर्मस्तव) बंधसामित्त (बंधस्वामित्व) सडसीइ (षडशीति) सयग (शतक) और सित्तरि (सप्ततिका) ये छह कर्मग्रंथ गिने जाते हैं। इनमें कम्मविवाग के कर्ता गर्गऋर्षि हैं। ये विक्रम की 10वीं शताब्दी के विद्वान् माने जाते हैं। इस कर्मग्रन्थ पर तीन टीकायें हैं । कर्मस्तव के कर्ता हैं, दूसरी उदप्रभसूरि कृत टिप्पन है। दोनों टीकाओं का रचनाकाल विक्रम की 13वीं शताब्दी कहा जाता है। कर्मस्तव को बंधोदयसत्वयुक्स्तव भी कहा जाता है। बंधस्वामित्य के कर्ता अज्ञात हैं । देवसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि ने वि. सं. 1172 में वृत्ति लिखी है। षडशीति को आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण भी कहा जाता है। चैत्यवासी जिनेश्वर सूरि के शिष्य जिनवल्लभगणि ने विक्रम की 12वीं शताब्दी में इस कर्मग्रन्थ की रचना की। इस पर दो अज्ञातकर्तृक भाष्य और बहुत सी टीकायें हैं। टीकाकारों में द्वितीय हरिभद्रसूरि और मलयगिरि के नाम मुख्य हैं 311. बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ __बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ एवं उसका राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान प्रसिद्ध ऐतिहासिक श्रीक्षेत्र श्रवणबेलगोला से पूर्व दिशा में 5 किमी. की दूरी पर बैंगलोर मार्ग पर 25-30 एकड़ भूमि पर विस्तृत मनोरम पर्यावरण के बीच संस्थापित है। श्री बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ के अन्तर्गत संचालित यह
270 0 प्राकृत रत्नाकर