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ऐसी शैली से किया गया है, जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के अति सामान्य ज्ञान से ही सूत्रों को समझ सकते हैं। सूत्रों को पाँच सोपानों में समझाया गया है - 1. सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धि विच्छेद किया गया है, 2. सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियाँ लिखी गई है, 3. सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, 4. सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा 5. सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं। परिशिष्ट में सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि - नियम एवं सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण भी दिया गया है, जिससे विद्यार्थी सुगमता से समझ सकें।
प्राकृत व्याकरण की तरह अपभ्रंश भाषा के व्याकरण को सरल एवं सुबोध शैली में समझाने हेतु अपभ्रंश रचना सौरभ, अपभ्रंश अभ्यास सौरभ एवं प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ की रचना कर डॉ. सोगाणी ने अपभ्रंश को सीखनेसिखाने के लिए नये- आयाम प्रस्तुत किये हैं । विभिन्न प्राकृतों की तरह विद्यार्थी स्वतः अभ्यास हल करते-करते अपभ्रंश भाषा में निपुणता प्राप्त कर लेता है । इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रौढ़ प्राकृत - अपभ्रंश रचना - सौरभ का प्रणयन कर प्राकृत अपभ्रंश-व्याकरण को पूर्णता प्रदान करने का प्रयत्न किया गया है। इस ग्रन्थ में अपभ्रंश एवं प्राकृत के क्रिया- सूत्रों एवं कृदन्तों का विशेषण कर उन्हें अत्याधुनिक तरीके से समझाया गया है।
इन व्याकरण-ग्रन्थों के साथ-साथ डॉ. सोगाणी ने आगमों तथा प्राकृत एवं अपभ्रंश के विभिन्न ग्रन्थों के पद्यांशों एवं गद्यांशों का संकलन कर उनका व्याकरणिक विशेषण सहित हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है। यह प्राकृत अपभ्रंश व्याकरणिक-जगत में नवीन प्रयोग है। इस तरह की पद्धति से किया गया अनुवाद पूर्व में कहीं उपलब्ध नहीं है । डॉ. सोगाणी द्वारा व्याकरणिक विश्लेषण सहित हिन्दी अनुवाद की प्रकाशित विभिन्न पुस्तकों की सूची निम्न हैं
1. अपभ्रंश काव्य सौरभ 2. प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ 3. आचारांग - चयनिका 4. दशवैकालिक-चयनिका 5. समणसुत्तं - चयनिका 6. उत्तराध्ययन-चयनिका 7. अष्टपाहुड-चयनिका 8. समयसार - चयनिका 9. परमात्मप्रकाश एवं योगसारचयनिका 10. वज्जालग्ग में जीवन-मूल्य 11. वाक्पतिराज की लोकानुभूति ।
इन पुस्तकों में दिया गया व्याकरणिक विश्लेषण प्राकृत - अपभ्रंश व्याकरण को समझने का प्रायोगिक तरीका है । इनके अध्ययन से भावात्मक अनुवाद की 246 प्राकृत रत्नाकर