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212. पउमचरिउ
पउमचरिउ की कथावस्तु को स्वयम्भू कवि ने काण्डों में विभक्त किया है। कथावस्तु को काण्डों में विभाजित करने में इन्होंने महाकवि वाल्मीकि का अनुशरण किया है। इसमें पाँच काण्ड हैं- विद्याधर काण्ड, अयोध्या काण्ड, सुन्दर काण्ड, युद्ध काण्ड और उत्तर काण्ड। विद्याधरकाण्ड- विद्याधर काण्ड में वर्णित इन्द्र, बलि और रावण क्रमशः विद्याधर वंश, वानर वंश तथा राक्षस वंश के प्रतिनिधि रहे हैं। भरत एवं बाहुबलि ने इक्षवाकु वंश का प्रतिनिधित्व किया है। इनमें प्रारम्भ की चार संधियों में इक्षवाकुवंशी ऋषभ और उनके पुत्र भरत तथा बाहुबलि की कथा है। भरत और बाहुबली के युद्ध का कथन भी इसमें किया गया है। शेष सोलह संधियों में एक ही वंश से उद्भूत विद्याधर, वानर और राक्षसवंश की परस्पर ईर्ष्या, प्रीति, प्रतियोगिता और युद्धों का कथन मिलता है। स्वयंभू कवि ने इसमें यह भी बताया है कि इनमें ये तीन वंश- विद्याधर, राक्षस एवं वानर परस्पर चाहे कितना ही लड़े हों किन्तु इक्ष्वाकुवंश का इनसे किसी भी बात को लेकर आमना-सामना नहीं हुआ, बल्कि इन तीनों का इस वंश से आदरसम्मान का भाव ही रहा है। अयोध्या काण्ड - अयोध्याकांड की प्रारम्भिक तीन संधियाँ श्री राम के विवाह एवं वनवास से सम्बन्धित हैं। इसके बाद 24 से 35 तक की संधियों में रामलक्ष्मण के शौर्य, पराक्रम, शरणागत रक्षा तथा जिनधर्म के सिद्धान्तों से सम्बन्धित अवान्तर कथाएँ हैं। सुन्दर काण्ड - यह हनुमान की विजयों का काण्ड है। मन्दोदरी,सीता व रावण के परस्पर वार्तालाप से सुन्दरकाण्ड की सुन्दरता बढ़ गई है। यहाँ कवि की स्वतन्त्र उद्भावना का बहुत ही मौलिक चित्रण हुआ है। युद्ध काण्ड- युद्ध काण्ड का आरम्भ विभीषण का रावण को त्यागकर राम के दल में मिलने की घटना से होता है। युद्ध काण्ड का मुख्य काव्यात्मक आकर्षण 62वीं संधि में हैं इसमें रावण गुप्त रूप से रात्रि में लंका नगर में घूमकर अपने योद्धाओं की रमणियों का वार्तालाप सुनता है जिसमें उनकी सम्मोहक चेष्टाओं के बीच रोमांचकारी उक्तियों संजायी गई हैं। यह श्रृंगार और वीर रस के संयोग का दुर्लभ उदाहरण है। स्वयंभू कवि ने युद्ध काण्ड में वीर, श्रृंगार, करुण एवं शान्त रस के रूप में एक साथ चार रसों का सफलतापूर्वक समावेश कर अद्भुत काव्यत्व प्रदर्शित किया है।
1600 प्राकृत रत्नाकर