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आधुनिक भारतीय आर्य-भाषाओं के विकासक्रम में मध्यप्रदेश की लोक भाषाओं का महत्त्वपूर्ण योग रहा है। शौरसेनी और अर्धमागधी प्राकृतों का मध्यप्रदेश में अधिक प्रसार था। अतः यहाँ विकसित होने वाली बुन्देली, कन्नौजी, ब्रजभाषा, अवधि, बघेली एवं छत्तीसगढ़ी बोलियों पर इनका प्रभाव अधिक है। ये बोलियाँ पश्चिमी और पूर्वी हिन्दी की उपभाषाएँ हैं। इनमें रचित साहित्य प्राकृत और अपभ्रंश की प्रवत्तियों से अछूता नहीं है। बोलचाल की भाषाओं में भी मध्युगीन आर्य-भाषाओं का प्रभाव नजर आता है। इस दशा में समग्ररूप से अध्ययन किया जाना अभी अपेक्षित है। बुन्देली भाषा के कतिपय शब्द द्रष्टव्य हैं
प्राकृत बुन्देली अर्थ गोणी गौन, गोनी 2 मन वजन की बोरी चंगेड़ा
डलिया चिल्लरी चिलरा
चूला-चूलैया चूल्हा चौप्पड चूपड़ा लगाया हुआ
छिरियाँ बकरी जोय जोहना देखना जोहार जुहार नमस्ते करना डगलक डिगला ढेला
चंगेरी
चूल्लि
छेलि
ढोर
ढोर
पशु
तितत
तीतो
गीला
प्राकृत और मराठी
दक्षिण भारत में महाराष्ट्र में प्राचीन समय में ही संस्कृत और प्राकृत का प्रभाव रहा है। महाराष्ट्री प्राकृत चूंकि लोकभाषा थी अतः उसने आगे आने वाली अपभ्रंश और आधुनिक मराठी को अधिक प्रभावित किया है। प्राकृत और महाराष्ट्री भाषा का तुलनात्मक अध्ययन कई विद्वानों ने प्रस्तुत किया है। यद्यपि महाराष्ट्री प्राकृत ही मराठी भाषा नहीं है। उसमें कई भाषाओं की प्रवृत्तियों का सम्मिश्रण है।
प्राकृत रत्नाकर 0 209