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अण + आहारा=अणाहारा पंच+ आचारा = पंचाचारा (ख)अव्यय संधि अव्ययसंधि के निम्नांकित उदाहरणों उपलब्ध हैं - __ केण + अपि = केणवि, केणावि
कहं + अपि = कहंपि, कहमवि
किं + अपि - किंपि, किमवि (ग)व्यंजन संधि
शौरसेनी प्राकृत में प्रथम शब्द के अंतिम म् को जब अनुस्वार नहीं होता तब वह बाद के स्वर के साथ मिल जाता है। यथा
स्वर = व्यंजन संधि सक्कं + अणज्जो = सक्कमणजो भावं + आदा = भावामादा जगं + असेसं = जगमसेसं समास-विधान
प्राकृत साहित्य में प्रयुक्त समासों को छह भागों में विभक्त कर सकते हैं- . 1.अव्ययीभव 2. तत्पुरुष 3. द्विगु 4. कर्मधारय 5. बहुव्रीहि एवं 6.द्वन्द समास।
समास में सम्मिलित दो शब्दों में से प्रथम शब्द को पूर्वपद एवं दूसरे शब्द को उत्तरपद कहते हैं। उत्तरपद में रहनेवाला अव्यय जब पूर्वपद में आ जाता है और वह प्रधान अर्थ का द्योतक होता है। तब ऐसे समास पदों को अव्ययीभाव समास कहते हैं। ये समास क्रियाविशेषण होते हैं और नपुसंकलिंग में प्रयुक्त होते हैं । यथाउपगुरुं = सो उवगुरु चिट्टदइ = वह गुरु के समीप बैठता है। अणुजिणं = सावगो अणुजिणं गच्छहि = श्रावक जिन के पीछे जाता है। पइदिणं = सीसो पइदिणं पढदि = शिष्य प्रतिदिन पढ़ता है। जहासत्तिं = मुणी जहासत्तिं तवइ = मुनि यथाशक्ति तप करता है। अदिदुल्लंह = अदिदुल्लहं माणुस जम्म = मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है। अइपउरं = अइपउंरं संसारदुक्खं = संसार के दुख बहुत अधिक हैं। 202 0 प्राकृत रत्नाकर