________________
दो या दो से अधिक संज्ञाएं एक साथ रखी गई हों और उन्हें च (य) शब्द से जोड़ा गया तब वे समान महत्त्व वाले शब्द द्वन्द समास कहलाते हैं। यथा
(1) पुण्णं य पावं य
पुण्णपावाणि
(2) जीवा य अजीवा य
जीवाजीवा
सुहदुक्खाणि
(3) सुहं च दुक्खं च 250.प्राकृत आगम कथाएँ
=
=
=
आगमकालीन कथाओं की प्रवृत्तियों के विश्लेषण के सम्बन्ध में डा. ए. एन. उपाध्ये का यह कथन ठीक ही प्रतीत होता है कि - 'आरम्भ में जो मात्रा उपमाएँ थीं, उनको बाद में व्यापक रूप देने और धार्मिक मतावलम्बियों के लाभार्थ उनसे उपदेश ग्रहण करने के निमित्त उन्हें कथात्मक रूप प्रदान किया गया है । इन्हीं आधारों पर उपदेश प्रधान कथाएँ वर्णात्मक रूप में या जीवन्त वार्ताओं के रूप में पल्लवित की गई है। अतः आगमिक कथाओं की प्रमुख विशेषता उनकी उपदेशात्मक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति है । किन्तु क्रमशः इसमें विकास होता गया है । उपदेश, अध्यात्म, चरित, नीति से आगे बढ़कर कुछ आगमों की कथाएँ शुद्ध लौकिक और सार्वभौमिक हो गई हैं। यही कारण है कि इन कथाओं को यदि स्वरूप मुक्त कहा जाए तो उनके साथ अधिक न्याय होगा ।' आक्सफोर्ड ने आगमिक कथाओं की शैली को टेलिग्राफिक स्टाइल कहा है। किन्तु यह शैली सर्वत्र लागू नहीं होती है ।
आगम ग्रन्थों की कथाओं की विषयवस्तु विविध है । अतः इन कथाओं का सम्बन्ध परवर्ती कथा-साहित्य से बहुत समय से जुड़ा रहा है। साथ ही देश की अन्य कथाओं से भी आगमो की कथाओं का सम्बन्ध कई कारणों से बना रहा है। डॉ. विन्टरनित्स ने कहा है कि श्रमणसाहित्य का विषय मात्र ब्राह्मण, पुराण और चरित कथाओं से ही नहीं लिया गया है, अपितु लोक कथाओं एवं परी कथाओं आदि से भी गृहीत हैं। प्रो. हर्टल भी जैन कथाओं के वैविध्य से प्रभावित है। उनका कहना है कि जैनों का बहुमूल्य कथा साहित्य पाया जाता है। इनके साहित्य में विभिन्न प्रकार की कथाएँ उपलब्ध हैं। जैसे - प्रेमाख्यान, उपन्यास, दृष्टान्त, उपदेशप्रद पशु कथाएँ आदि । कथाओं के माध्यम से इन्होंने अपने सिद्धान्तों को जन साधारण तक पहुँचाया है।
204 D प्राकृत रत्नाकर