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है। नपुंसक, ज्योतिषी और विक्षिप्त भी शौरसेनी का प्रयोग करते हैं। स्त्री पात्र एवं शिशु महाराष्ट्री का तथा पुलिस कर्मचारी, मछुए, सर्वदमन आदि मागधी का प्रयोग करते हैं । सप्तम अंक में तापसी के कथनों में प्रयुक्त प्राकृत भाषा को देखने से कालिदास की प्राकृत सम्बन्धी योग्यता और समृद्धता दोनों का अनुमान लगाया जा सकता है । यथा - इमस्स बालअस्स देविसंवादिणी आकिदी त्तिविम्हाविदम्हि। . अपरिइदस्स वि दे अप्पडिलोमो संवुत्तोत्ति॥
अर्थात् - इस बालक की और आपकी आकृति समान है। ऐसा (देखकर) मैं विस्मित हूँ। अपरिचित आपके लिए (यह) अनुकूल हो गया है।
कालिदास द्वारा प्रयुक्त प्राकृत भाषा बोलचाल की प्राकृतों से भिन्न व्याकरण के नियमों से रूढ़ है। प्राकृत के अनेक मुहावरों एवं लोकोक्तियों का भी इसमें प्रयोग हुआ है। मालविकाग्निमित्रम् की कथावस्तु तो प्राकृत सट्टक परम्परा का ही पूर्ण अनुकरण करती प्रतीत होती है। इसमें राजमहिशी की परिचारिका मालविका और राजा अग्निमित्र की प्रणय कथा वर्णित है। इस नाटक में अधिकांश स्त्री पात्र हैं और उन्होंने प्राकृत भाषा का ही प्रयोग किया है। इन पात्रों द्वारा प्रयुक्त प्राकृत के संवाद सरस एवं मधुर हैं । कालिदास का विक्रमोर्वशीयम् नाटक तो एक प्रकार का प्राकृत सट्टक ही है। इसमें राजा पुरुवर तथा अप्सरा उर्वशी की प्रेमकथा वर्णित है। मेनका, रम्भा, सहजन्या, चित्रलेखा, उर्वशी आदि अप्सराएँ, यवनी, चेटी, राजमहिषी, तापसी आदि स्त्री पात्र एवं विदूषक प्राकृत ही बोलते हैं । अपभ्रंश के भी कुछ सुंदर पद्य इसमें मिलते हैं। यथा
हउँपइँपुच्छिमि आअक्खहि गअवरुललिअपहारेंणासिअतस्वरु। दूरविणिजिअससहरुकंती दिट्ठिपिआ पइँ सम्मुह जंती॥(4.22)
अर्थात् – सुन्दर प्रहारों से वृक्षों का नाश करने वाले, हे श्रेष्ठ हाथी! मैं तुमसे पूछ रहा हूँ कि, कहो तुम्हारे द्वारा दूर से ही चन्द्रमा की शोभा को हरण करने वाली क्या मेरी प्रिया के सम्मुख जाती हुई देखी गई है?
62 0 प्राकृत रत्नाकर