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शृंगार व प्रेम के अतिरिक्त इसमें सज्जन - प्रशंसा, दुर्जन- निंदा, सुभाषित, प्रकृति-चित्रण, ग्रामीण - सौन्दर्य, दरिद्रता आदि से सम्बन्धित मुक्तकों का भी संकलन है । तत्कालीन सामाजिक परम्पराओं का भी इनमें चित्रण मिलता है। विषय की दृष्टि से जहाँ इस ग्रन्थ में विविधता है, वहीं काव्यात्मक सौन्दर्य की दृष्टि से गाथासप्तशती अनुपम कृति है। श्रृंगार रस का तो यह अक्षय सागर ही है। रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, व्यंगोक्ति, अन्योक्ति आदि अलंकारों का स्थानस्थान पर सुन्दर प्रयोग हुआ है। अन्योक्ति अलंकार का यह उदाहरण दृष्टव्य है - तुह मुहसारिच्छं ण लहइति संपुण्णमंडलो विहिणा ।
अण्णमअं व्व घडइडं पुणो वि खण्डिज्जड़ मिअंको ॥ ... (गा. 3.7 ) अर्थात् - जब सम्पूर्ण चन्द्र भी तुम्हारे मुख की समानता नहीं प्राप्त कर सका, तो विधाता के द्वारा दूसरे नवीन चन्द्रमा का सृजन करने के लिए बार-बार चन्द्रमा को खंडित किया जा रहा है।
106. गाथासहस्री
सकलचन्द्रगणि के शिष्य समयसुन्दरगणि इसके संग्रहकर्ता हैं। वे तर्क, व्याकरण, साहित्य आदि के बहुत बड़े विद्वान् थे । विक्रम संवत् 1986 ईसवीं सन् 1929 में उन्होंने इस ग्रन्थ में लौकिक-अलौकिक विषयों का संग्रह किया है । इन पर एक टिप्पण भी है, उसके कर्त्ता का नाम अज्ञात है। जैसे गाथासप्तशती में 700 गाथाओं का संग्रह है, वैसे ही इस ग्रन्थ में 855 सुभाषित गाथाओं का संग्रह है । यहाँ 36 सूरि के गुण, साधुओं के गुण, जिनकल्पिक उपकरण, यति दिनचर्या, 25 1/2 आर्यदेश, ध्याता का स्वरूप, प्राणायाम, 32 प्रकार के नाटक, 26 प्रकार श्रृंगार, शकुन और ज्योतिष आदि से संबंध रखनेवाले विषयों का संग्रह है । महानिशीथ, व्यवहारभाष्य, पुष्पमालावृत्ति आदि के साथ-साथ महाभारत मनुस्मृति आदि संस्कृत के ग्रन्थों से भी यहाँ उद्धरण प्रस्तुत हैं। यह ग्रन्थ जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फंड सूरत से सन् 1940 में प्रकाशित है। 107. गाथालक्षण (गाहालक्खण)
गाथालक्षण अथवा नन्दिताढ्य छन्द सूत्र प्राकृत छन्दों पर लिखी हुई एक अत्यन्त प्राचीन रचना है, जिसके कर्त्ता नन्दिताढ्य हैं। इसमें 16 गाथाओं में
प्राकृत रत्नाकर 095