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व्यंग्य में भी अपनी बात कहते हैं । गुण एवं गुणी व्यक्तियों के सम्बन्ध में सज्जन पुरुष एवं लक्ष्मी के विषय में शासक और अधिकारियों के स्वभाव से सम्बन्धित अनेक नीति की बातें भी इस काव्य में उपलब्ध हैं । लोभी एवं लालची व्यक्तियों के विषय में कवि व्यंग्य करता है कि आश्चर्य है, सम्पत्ति की बहुत अधिक ऊँचाई (स्थिति) पर पहुँच कर व्यक्ति सम्पत्ति से तृष्णा नहीं मिटाते हैं। तो क्या वे पर्वत पर चढ़कर अब आकाश में चढ़ना चाहते हैं । यथातण्हा अखंडिअच्चिअ विहवे अच्चुण्णए लहिऊण। सेलं पि समारूहिऊण किं व गअणस्स आरूढ़ ॥ इस महाकाव्य का विभिन्न दृष्टियों से मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है। इस काव्य ने यह नया प्रयोग आवश्यक है कि कथानायक भले ही श्रद्धा और इतिहास का पात्र न हो, ग्रन्थ की विषयवस्तु भी काव्य को लोकप्रिय एवं सार्वभौमिक बना सकती है। कवि की अनुभूतियाँ जनमानस के स्वभाव और प्रवृत्तियों को प्रकट कर दें, यही महाकाव्य की सफलता है। इसमें यह गउडवहो अग्रिम पंक्ति में रखने योग्य है। 104. गणहरहोरा(गणधरहोरा):
गणहरहोरा नामक यह कृति किसी अज्ञात नामा विद्वान् ने रची है। इसमें 29 गाथाएँ हैं। मंगलाचरण में नमिउण इंदभूइं उल्लेख होने से यह किसी जैनाचार्य की रचना प्रतीत होती है। इसमें ज्योतिष विषयक होरा संबंधी विचार है। इसकी 3 पत्रों की एक प्रति पाटन के जैन भंडार में है। 105.गाहासत्तसई
गाथासप्तशती मुक्तककाव्य की परम्परा का प्रतिनिधि काव्य है। इसकी गणना शृंगार रस प्रधान प्राकृत के सर्वश्रेष्ठ मुक्तककाव्यों में की जाती है। इस काव्य के संकलनकर्ता महाकवि वत्सल हाल हैं। इनका समय लगभग ई. सन् की प्रथम शताब्दी माना गया है। कवि हाल ने अनेक कवि एवं कवित्रियों की लगभग 1 करोड़ गाथाओं में से सात सौ सर्वश्रेष्ठ गाथाओं का संकलन कर गाथासप्तशती की रचना की है। इस दृष्टि से यह सत्तसई परम्परा का प्रतिनिधि ग्रन्थ भी है। इसी ग्रन्थ के आधार पर आगे चलकर आर्यासप्तशती, बिहारीसतसई
प्राकृत रत्नाकर 093