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स्थानांग, समावायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अंतकृदृशा, अनुत्तरौपपातिकसूत्र आदि आगमों पर टीकाएँ लिखी हैं। प्राकृत आगम ग्रन्थों पर धवलाटीका, सुखबोधा टीका आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। 154. ठक्करफेरु
कन्नापुर महेन्द्रगढ़ वासी श्रीचन्द्र के पुत्र श्रीमालवंशीय ठक्करफेरु ने संवत् 1372 ईसवी सन् 1290 से 1318 के बीच निम्नलिखित सात ग्रंथों की रचना कीः (1)युगप्रधान चतुष्पदी (2) गणितसार (3)वास्तुसार (4) ज्योतिषसार (5) रत्नपरीक्षा (6) द्रव्यपरीक्षा (7) धातुत्पत्ति । ठक्करफेरु जिनेन्द्र के भक्त थे
और दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन के खजांची थे। सुरमिति अगस्त्य और बुद्धभट्ट के द्वारा लिखित रत्नपरीक्षा को देखकर उन्होंने अपने पुत्र हेमपाल के लिये ग्रंथ की रचना की थी। 155 ठाणं.स्थानांगसूत्र __ अर्धमागधी आगम साहित्य के अंग ग्रन्थों में स्थानांग का तीसरा स्थान है। प्रस्तुत ग्रन्थ में 10 अध्ययन हैं । इस आगम में विषय को प्रधानता न देकर संख्या को प्रधानता दी गई है। प्रत्येक अध्ययन में अध्ययन की संख्यानुक्रम के आधार पर जैन सिद्धान्तानुसार वस्तु-संख्याएँ गिनाते हुए उनका वर्णन किया गया है। 156.णरविक्कमचरियं
इसमें नरसिंह नृप के पुत्र राजकुमार नरविक्रम, उसकी पत्नी शीलवती और उन दोनों के दो पुत्रों के विपत्तिमय जीवन का वर्णन है जो एक अप्रिय घटना के कारण राज्य छोड़कर चले गये थे और अनेक साहसिक घटनाओं के बाद पुनः मिल गये थे। यह कथा पूर्वकर्म-फल-परीक्षा के उद्देश्य से कही गई है। 157.णाणपंचमीकथा
कार्तिक शुक्ल पंचमी को ज्ञानपंचमी और सौभाग्यपंचमी नाम से भी कहा जाता है। इस दिन ग्रन्थ को पट्टे पर रखकर पूजा, समार्जन, लेखन आदि करना चाहिये और 'नमो नाणस्स' का 1000 जाप करना चाहिये। इसके माहात्म्य को प्रकट करने के लिए ज्ञानपंचमीकथा, श्रुतपंचमीकथा, कार्तिकशुक्लपंचमीकथा, सौभाग्यपंचमीकथा या पंचमीकथा, वरदत्तगुणमंजरीकथा तथा भविष्यदत्तचरित नाम से अनेकों कथाग्रन्थ लिखे गये हैं।
1240 प्राकृत रत्नाकर