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स्थिति, अनुभाग एवं प्रदेशबन्ध आदि विशेषताओं का विश्लेषण इस कसायपाहुड में किया गया है। संक्षेप में यह कर्मसिद्धान्त का ग्रन्थ है, जिसने परवर्ती साहित्य को बहुत प्रभावित किया है। इस मूल ग्रन्थ पर 8वीं शताब्दी में आचार्य वीरसेन ने ‘जयधवला' नामक विशाल टीका लिखी है। इस पर चूर्णि आदि भी लिखी गयी है । 111. गोम्मटसार
आचार्य नेमिचन्द्र का समय ई. सन् 11वीं शती है। इनकी निम्नलिखित रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 1. गोम्मटसार, 2. त्रिलोकसार, 3. लब्धिसार, 4. क्षपणासार, 5. द्रव्यसंग्रह ।
गोम्मटसार दो भागों में विभक्त है - (1) जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड | जीव काण्ड में 733 गाथाएँ और कर्मकाण्ड में 962 गाथाएँ हैं । इस ग्रन्थ पर संस्कृत में दो टीकाएँ लिखी गई हैं- (1) नेमिचन्द्र द्वारा जीव प्रदीपिका और (2) अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती द्वारा मन्द्रप्रबोधिनी । गोम्मटसार पर केशववर्णी द्वारा एक कन्नड़ वृत्ति भी लिखी मिलती है। टोडरमलजी ने सम्यग्ज्ञान चंद्रिका नाम की वचनिका लिखी हैं। गोम्मटसार षट्खण्डागम की परम्परा का ग्रन्थ है। जीवकाण्ड में महाकर्मप्राभृत के सिद्धान्त सम्बन्धी जीवसमास, पर्याप्ति प्राण, संज्ञा चौदह मार्गणा और उपयोग इन बीस अधिकारों में जीव की अनेक अवस्थाओं का प्रतिपादन किया गया है। कर्मकाण्ड में प्रकृतिसमूत्कीर्त्तन, बन्धोदय, सत्व, सत्वस्थान, भंग, त्रिचूलिका स्थान, समुत्कीर्त्तन प्रत्यय, भावचूलिका और कर्मस्थिति रचना नामक नौ अधिकारों में कर्म की विभिन्न अवस्थाओं का निरूपण किया है । 112. घनश्याम कवि
कवि घनश्याम संस्कृत, प्राकृत और देशी इन तीनों भाषाओं में समान रूप से कविता करते थे । कवि के पिता का नाम महादेव, माता का काशी, दादा का चौडाजि - बालाजि, बड़े भाई का नाम ईसा और बहन का नाम शकम्भरी था । कवि की दो पत्नियाँ थीं, जिनके नाम सुन्दर और कमला थे। गोर्द्धन और चन्द्रशेखर नाम के इनके दो पुत्र थे। इनका जन्म ई. सन् 1700 के लगभग हुआ
98 प्राकृत रत्नाकर