________________
ईसा की आठवीं शताब्दी काव्य साहित्य के लिए स्वर्णयुग जैसी थी। संस्कृत के भवभूति जैसे समृद्ध कवि इस युग में हुए, अपभ्रंश के स्वयम्भू महाकवि की काव्य-प्रतिमा इसी समय विकास को प्राप्त हुई। प्राकृत के महान् कथाकार उद्द्योतनसूरि की कुवलयमाला कहा इसी समय की रचना है। पुराणकार जिनसेन इन्हीं के समकालीन थे। ऐसे काव्यमय समृद्ध वातावरण में प्राकृत के महाकवि, वाक्पतिराज ने अपना प्रसिद्ध गउडवहो नामक महाकाव्य लिखा । वाक्पतिराज को कन्नौज के राजा यशोवर्मा का राज्याश्रय प्राप्त था। अतः कवि ने अपने आश्रयदाता यशोवर्मा के द्वारा गौडदेश (मगध) के किसी राजा के वध किये जाने की घटना को अपने इस महाकाव्य का विषय बनाया। ___ गउडवहो की कथावस्तु पूर्ण नहीं मिलती। अर्थात् गौडदेश के राजा के वध का सम्पूर्ण वर्णन इसमें नहीं है। सम्भवतः यह काव्य इतना ही लिखा गया है, फिर भी यह किसी महाकाव्य से कम नहीं है। इसमें कुल 1209 प्राकृत गाथाएँ हैं। महाकाव्य की प्रचलित परम्परा के अनुसार यह महाकाव्य सों या आश्वासों में विभक्त नहीं है। विभिन्न वर्णनों के कुलक इसमें हैं, किन्तु उनका आकार निश्चित नहीं है। सबसे बड़ा कुलक 150 गाथाओं का है और सबसे छोटा 5 गाथाओं का। यद्यपि यह काव्य कवि द्वारा अपने आश्रयदाता की प्रशस्ति में लिखा गया है; किन्तु काव्यात्मक गुणों से यह परिपूर्ण है। इसके सम्पादक श्री पण्डितजी ने कहा
- This is one of the best and most remarkable parts of the poem and abounds in sentiments of the very highest order."
गउडवहो के रचनाकार महाकवि वाक्पतिराज अपने आश्रयदाता राजा यशोवर्मा के समकालीन थे। राजतरंगिणी के अनुसार यशोवर्मा को ललितादिव्य मुक्तापीड ने सन् 736 के आसपास पराजित किया था (4.134)। ललितादित्य का समय सन् 724 से 760 ई. तक माना जाता है। अतः इसी अवधि में यशोवर्मा का गौडदेश का विजयकाल रहा होगा, जिसमें यह महाकाव्य लिखा गया है। गउडवहो की 799वीं गाथा में वाक्पतिराज ने भवभूति के काव्य की प्रशंसा की है और अजवि शब्द द्वारा उसे अपना समकालीन बतलाया है। भवभूति का समय भी आठवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। गउडवहो की 829वीं गाथा में सूर्यग्रहण का
900 प्राकृत रत्नाकर