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80. कहाणयं(धम्माखाणयं)
इसमें 140 प्राकृत गाथाएँ हैं जिनपर संस्कृत में विनयचन्द्र की टीका है। इस ग्रंथ का नाम धम्मक्खाणयकोस भी है। पाटन भण्डार में इसकी हस्तलिखित प्रति है, जिसमें वि.सं. 1166 रचना या लिपि का समय दिया गया है। 81. कथारत्नकोश(कहारयणकोसो)
कथारत्नकोश प्राकृत कथाओं का संग्रह ग्रन्थ है। नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि के शिष्य देवभद्रसूरि (गुणचन्द्र) ने वि. सं. 1158 में भड़ौच में इस ग्रन्थ की रचना की थी। गुणचन्द्रगणि देवभद्रसूरि नवांगीवृत्त्किार अभयदेवसूरि के शिष्य प्रसन्नचन्द्रसूरि के सेवक और मुमतिवाचक के शिष्य थे। इस ग्रन्थ में 2 अधिकार हैं। प्रथम अधिकार में 33 एवं दूसरे अधिकार में 17 कथाएँ हैं। सम्यक्त्व, व्रत, संयम आदि शुष्क विषयों को कथाओं के माध्यम से सरस बनाकर प्रस्तुत किया गया है। इस कथा-ग्रन्थ की सभी कथाएँ धार्मिक होते हुए भी रोचक एवं मनोरंजक हैं। इन कथाओं के माध्यम से एक ओर शारीरिक सुखों की अपेक्षा आध्यात्मिक सुखों को महत्त्व दिया गया है, वहीं दूसरी ओर जातिवाद का खण्डन कर मानवतावाद की प्रतिष्ठा की गई है। जीवन शोधन के लिए व्यक्ति का आदर्शवादी होना आवश्यक है। इस कृति की विभिन्न कथाओं का उद्देश्य यही है कि उपशांत होकर व्यक्ति आदर्श गृहस्थ का जीवन-यापन करे। सुदत्ताख्यान द्वारा गृहकलह के दोषों का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। काव्यात्मक वर्णनों की दृष्टि से भी यह कथा-ग्रन्थ समृद्ध है। + कथारत्नकोश (सन् 1101 में लिखित) गुणचन्द्रगणि की महत्त्वपूर्ण रचना है जिसमें अनेक लौकिक कथाओं का संग्रह है। इसके अतिरिक्त इन्होंने पासनाहचरियं, महावीरचरियं, अनंतनाथस्तोत्र, वीतरागस्तव, प्रमाणप्रकाश आदि ग्रंथों की रचना की है। कथारत्नकोश में 50 कथानक हैं जो गद्य और पद्य में अलंकार प्रधान प्राकृत भाषा में लिखे गये हैं। संस्कृत और अपभ्रंश का भी उपयोग किया है। सुदत्तकथानक में गृहकलह का बड़ा स्वाभाविक चित्रण किया "गया है - कोई बहू कुँए से जल भरकर ला रही थी, उसका घड़ा फूट गया। यह
प्राकृत रत्नाकर 057