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देखकर उसकी सास ने गुस्से में उसे एक तमाचा जड़ दिया। बहू की लड़की ने जब यह देखा तो उसने अपनी दादी के गले का नौ लड़ियों का हार तोड़ डाला । बहू की ननद अपनी माँ का यह अपमान देखकर मूसल हाथ में उठाकर अपनी भतीजी को मारने दौड़ी जिससे उसका सिर फट गया और उसमें से लहु बहने लगा। यह देखकर बहू भी अपनी ननद को मूसल से मारने लगी। इस प्रकार प्रतिदिन किसी न किसी बात पर सारे घर में कलह मचा रहता और घर का मालिक लज्जावश किसी से कुछ नहीं कह सकता था। इस ग्रन्थ की एक दूसरी कथा इस प्रकार है -
किसी ब्राह्मण के चार पुत्र थे। जब ब्राह्मण की जीविका का कोई उपाय न रहा तो उसने अपने पुत्रों को बुलाकर सब बात कही। यह सुनकर चारों पुत्र धन कमाने चल दिये। पहला पुत्र अपने चाचा के यहाँ गया। पूछने पर उसने कहा कि पिता जी ने अपना हिस्सा माँगने के लिए मुझे आपके पास भेजा है। यह सुनकर चाचा अपने भतीजे को भला-बुरा कहने लगा, और गुस्से में आकर चाचा ने उसका सिर फोड़ दिया। मुकदमा राजकुल में पहुँचा। चाचा ने किसी तरह 500 द्रम्म देकर अपना पिंड छुड़ाया। लड़के ने यह रुपया अपने पिता को ले जाकर दे दिया। दूसरा पुत्र त्रिपुड आदि लगाकर किसी योगाचार्य के पास गया और रौब में आकर उसे डाँटने-फटकारने लगा। योगाचार्य डर कर उसके पैरों में गिर पड़ा और उसने उसे बहुत सा सोना दान में दिया। तीसरे पुत्र ने धातुविद्या सीख ली और अपनी विद्या से वह लोगों को ठगने लगा। उसने किसी बनिये से दोस्ती कर ली। अपनी विद्या के बल से वह एक माशा सोने का दो माशा बना देता था। एक बार बनिये ने लोभ में आकर उसे बहुत सा सोना दे दिया, और वह लेकर चंपत हो गया। चौथा पुत्र प्रचुर रिद्धिधारी किसी लिंगी का शिष्य बन गया और उसकी सेवा करने लगा। एक दिन आधी रात के समय वह उसका सब धन लेकर चंपत हुआ ।
इस कथाकोश के पहले अधिकार का नाम धर्माधिकारी - सामान्य-गुणवर्णन है। इसमें 9 सम्यक्त्व पटल की तथा 24 सामान्य गुणों की इस तरह 33 कथायें हैं । द्वितीय धर्माधिकारी- विशेषगुण-वर्णनाधिकार में बारह व्रतों तथा
58 प्राकृत रत्नाकर