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* पार्श्वनाथ-चरित्र - प्रभावसे प्रकाशित देवताओंके रचे हुए उत्तम सिंहासनपर विराजमान, चमकते हुए चँवर जिनपर दुल रहे हैं, जिनपर तीन छत्र लगे हैं, सोना-चाँदी और मणियोंसे चमकते हुए वप्र-त्रयसे जो विभूषित हैं और सूर्यके समान प्रकाशमान हो रहे हैं, ऐसे श्रीपार्श्वनाथदेवकी मैं वन्दना करता हूँ। ___ वीणा और पुस्तक धारण करनेवाली, देवेन्द्रसे सेवित, सुरअसुर और मनुष्योंसे पूजित, संसार-सागरसे तारनेवाली, विजय देनेवाली, दरिद्रता दूर करनेवाली, विघ्नरूपी अन्धकारको दूर करनेवाली, सुखको देनेवाली और सब अर्थोकी सिद्धि करनेवाली भगवती सरस्वतीको प्रणाम कर और गुरुके चरण-कमलोंको नमस्कार कर मैं भगवान् पार्श्वनाथका चरित्र लिखता हूँ।
प्रथम भव। लाख योजनमें फैल हुए जम्बू द्वीपके दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्रमें बारह योजन लम्बा, नौ योजन चौड़ा, बड़े-बड़े सुन्दर मकानोंसे सुशोभित, दुकानोंकी श्रेणीसे विराजित और नर-रत्नोंसे अलङ्कत पोतनपुर नामका नगर है। उसी नगरमें अरविन्दके समान शोभा-युक्त अरविन्द नामके राजा राज्य करते थे। वह बड़ेदी न्यायी प्रजा पालक, शत्रुओंको जीतनेमें चतुर, धर्म-निष्ठ, श्रद्धालु, परोपकारी और प्रतापी थे। उनकी पटरानीका नाम धारिणी था, जो बड़ी ही परोपकारिणी, न्यायवती, शीलवती, गुणवती, धर्मवती और पुत्रवती थीं। उनके राज्यमें प्रजा बड़ी ही सुखी थी। उनके पुरोहितका नाम विश्वभूति था। वह विद्वान, पण्डित