________________ सेठियाजेनमल्पमाला marrian - 53 हेमन्त (अगहन- पोस) शिशिर (माघ- फाल्गुण) और वर्षा (सावन-भादों) ऋतु में दही खाना लाभदायक है / शरद् (माश्विन- कार्तिक) वसन्त (चैत्र- वैशाख ) और ग्रीष्म (जेठ- भाषाढ़) ऋतु में दही कदापि न खाना चाहिए / रात में भी दही नहीं खाना चाहिए / यदि रात में दही खाना ही हो तो विना धी और बूरे के, या विना गर्म किये, या विना मूंग की दाल के और विना आवलों के न खाना चाहिए। यदि रक्त--पित्त सम्बन्धी कोई रोग हो तो किसी तरह भी दही न खाना चाहिए जो मनुय नियम- विरुद्ध दही खाता है, उसको ज्वर, रुधिर विकार, पित्त, कोढ़, पीलिया, भ्रम और भयंकर कामला रोग हो जाता है। 54 दही से अधिक पानी मिलाया जावे और बिलोकर उस का मक्खन निकाल लिया जावे, तब उसे छाछ कहते हैं / एक सेर दही में पाव भर पानी मिलाकर जो विलोया जावे, उसे तक कहते हैं। छाछ-- हलकी,पित्त, थकावट, और प्यास को मिटाती है, वातनाशक तथा कफ को करने वाली है / नमक डालकर इसे काम में लाने से यह अग्नि को बढ़ाती है तथा कफ को कम करती है / तक का यथायोग्य सेवन करने वाला मनुष्य सदा नीरोग रहता है, तथा तक में नष्ट हुए रोग फिर उत्पन्न नहीं होते हैं / वायु की प्रकृति वाले को तथा वायु के रोगी को खट्टा तक्र या छाछ सेंधा नमक डालकर पीने से लाभ होता है, पित्त की प्रकृति वाले को तथा पित्त के रोगी को मिश्री डालकर मीठी छाछ या तक पीने से लाभ होता है तथा