________________ नीति-शिक्षा-संग्रह सब पदार्थ भी दूध के मित्रवर्ग में हैं। दूध के अमित्र (शत्रु)-- सेंधे नमक के सिवा बाकी के सब खार दूध के गुण को बिगाड़ने वाले हैं / इसी प्रकार आँवले के सिवा सब तरह * कोस्टाई, मूंग मोंठ, मूली, शाक मादि के साथ मिलकर शत्रु का काम करते हैं; क्योंकि दूध के साथ नमक का ग्वार, गुड़, मूंग और मोंठ आदि खाने से कोढ़ भादि चर्म रोग हो जाते हैं। दूध के साथ शाक मद्य और आसव खाने से पित्त रोग हो जाते हैं और अन्त में मृत्यु की शरण लेनी पड़ती है। -- 52 दही---- अग्नि दीपक, नारी, चिकना और पचने पर खट्टा होता है / यह पित, श्वास, रक्तविकार, सूजन पैदा करने वाला, मेद तथा कफ को बढ़ाने वाला और मल को बांधने वाला, एवं दस्त को गाढ़ा करने वाला है : जो दही बहुत खट्टा हो या फीका हो, वह न खाना चाहिए। जो दही खून जमा हुमा हो तथा मीठा और खटमीठा हो, एवं स्वादिष्ट हो, वही खाने योग्य होता है। जिस दही को कपड़े में बांधकर पानी टपका दिया जाता है, वह दही बहुत स्निग्ध, वात- नाशक, कफ- उत्पादक, भारी, शक्ति-दायक, पुष्टि- कारक और रुचि-कारक होता है। दूसरा दही खट्टा होने से पित्त- वर्द्धक होता है, किन्तु यह दही मीठा होने से पित्त का नाश करता है / इस दही को मिश्री या बूरा मिलाकर खाने से पिता रक्त- विकार तथा दाह मिटता है। .