________________
२. अजीव तत्त्व रूपी तथा अरूपी दोनों प्रकार का है। ३. पुण्य, पप, आश्रव और बंध, ये चार तत्त्व कर्म-परिणाम होने से रूपी है। ४. संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये तीनों जीव के परिणाम होने से अरूपी
नवतत्त्वों में ४जीव एवं ५ अजीव . जीव, यह जीव तत्त्व है। संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये तीन तत्त्व भी जीव स्वरुप होने से अथवा जीव का स्वभाव होने से जीव तत्त्व है। अत: जीव, संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये ४ तत्त्व जीव है। बाकी के ५ तत्त्व अजीव है। पुण्य, पाप, आश्रव और बंध, ये चारों कर्म परिणाम होने से अजीव तत्त्व है तथा अजीव, अजीव तत्त्व ही है।
. नवतत्त्वों में संख्या भेद इन नौ तत्त्वों का एक-दूसरे में समावेश करने पर सात, पांच अथवा दो तत्त्व भी हो जाते हैं। . १. पुण्य तथा पाप का आश्रव या बंध में समावेश होने पर सात तत्त्व हो जाते हैं।
२. आश्रव, पुण्य तथा पाप को बन्ध तत्त्व में समाविष्ट करने पर तथा निर्जरा और मोक्ष दोनों में से एक को गिनने पर पांच तत्त्व हो जाते हैं।
३. संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये जीव स्वरुप है, अतः इन्हें जीव में गिने एवं पुण्य, पाप, आश्र तथा बंध अजीव स्वरुप होने से इन्हें अजीव में गिने तो जीव और अजीव, ये दो ही तत्त्व होते हैं । यह तो विवक्षाभेद की अपेक्षा से कहा गया है परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में नौ तत्त्वों का विस्तृत प्रतिपादन किया गया है।
नवतत्त्वों के भेद
गाथा
चउदस-चउदस बायालीसा, बासी य हुंति बायाला ।
सत्तावन्नं बारस, चउ नव भेया कमेणेसि ॥२॥ -------------- -- ------- श्री नवतत्त्व प्रकरण