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॥ श्री जिनाय नमः ॥
श्री वामनाचार्य विरचित तामिल भाषा का मूल ग्रन्थ
मेरु मंदर पुराण
हिन्दी टीकाकार (श्री आचार्य देशभूषण महाराज )
मंगलाचरण कुटुंगलिल्लान् गुणत्ता निरैदान गुणत्तान् । महिद वैयमळं दान वय निड़ पेट्रि॥ मुद्र, मुरत्तानुरईरोंब दाय दोंडार । सेट्रगंडी पनि विमलन शरण शैन्नि वैत्तेन ॥१॥ मेदक्क ज्योति विमलन् गणत्त क्कु नामर् । मादक्क कीति युयर् मंदर मेरु नामर् ।। पोदक्कडलार् पुराणघोरुळान् मनत्तं च ।
सोदिक्क लुटेन तमिलाळोंड, सोल्ल लुट्रेन् ॥२॥ पंच परम पद कू प्रणमि श्रत को नमि हितकार । मंदर मेरु पुराण की भाषा लिखिहूँ सार । विमलनाथ श्री विमल ज्ञान से, हने घाति अघात । पाए महा अष्ट गुण तुमने, सिद्धन के सुख नाथ ॥ श्री 'देशभूषण' त्रियोगकर, वन्दे विमल महान । करे भाषा तामिल की, मंदर मेरु पुरान ।
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