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माण्डूक्योपनिषद १. अगम प्रकरण
(शास्त्रीय ) ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रं पश्येमाक्षिभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा : सस्तनूभिरव्यशेम देवहितं यदायुः ॥ स्वस्ति न इन्द्रोवृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तायो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!! हे देवताओ, हम (सदा) अपने कानों द्वारा शुभ सुनें । हे पूज्यवर श्रेष्ठगण ! हम अपनी आँखों से कल्याण (भद्र) देखें । हम अपने निर्धारित जीवनकाल में प्रसन्न रहते हुए (आपका) स्तवन करते रहें।
प्राचीन एवं सुप्रसिद्ध इन्द्र, सर्वज्ञ पूषण (सूर्य), तीव्र गति के अधिष्ठाता (वायु), जो हमे हानियों से सुरक्षित रखते हैं, और बृहस्पति, जो हमारी भीतरी आध्यात्मिक सम्पत्ति की रक्षा करते हैं-ये सब (शास्त्र को समझने की बौद्धिक शक्ति और इसके उपदेशों का अनुसरण करने के लिए साहस-पूर्ण 'हृदय' प्रदान करने की') हमे शक्ति प्रदान करें। ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः ।
किसी उपनिषद् का अध्ययन गरु और शिष्य के पारस्परिक शान्ति-मंत्र के उच्चारण के बिना प्रारंभ नहीं होता। प्रतिदिन गुरु और शिष्य इकट्ठ बैठ
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