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विषय दिखायो देगा । वेदान्त का गहन पठन-पाठन करने वाला व्यक्ति यदि यह धारणा रखता है कि वह अपने मानसिक एवं बौद्धिक क्षेत्र से सम्बन्धित व्यक्तित्व में प्रवेश किये बिना 'धर्म' के रहस्य को पूरी तरह जान लेगा तो वह उस अदूरदर्शी व्यक्ति के समान होगा जो मनुष्य के शरीर का रहस्य जाने बिना एक कुशल डाक्टर बनने का स्वप्न ले रहा हो ।
मुझे विश्वास है कि 'माण्डूक्योपनिषद्' का हिन्दी संस्करण अंग्रेजी न जानने वाले वेदान्त-प्रेमियों में उत्साह एवं उत्कण्ठा का संचार कर देगा जिससे वे इस ग्रन्थ को अधिक अपना सकें। ___भारत के प्रमुख नगरों में 'केनोपनिषद्', 'कठोपनिषद्', 'मुण्डकोपनिषद्', 'ईशावास्योपनिषद्', 'श्रीमद्भगवद्गीता', आदि में निहित अमर-संदेश को सभ्य श्रोताओं तक पहुँचाने का मुझे सुअवसर प्राप्त हुआ है; अतः यदि 'माण्डूक्य कारिका' की यह प्रति पाठकों के हाथ में पहुँच कर उनमें आत्म स्वरूप की अनुभूति की इच्छा प्रबल कर सके तो मैं अपने इस प्रयास को सफल मानूंगा। ___इस संबंध में मैं इस पुस्तक की प्रकाशिका श्रीमती शीला पुरी, श्री वृजमोहन लाल (सेवा-निवृत्त चीफ इंजीनियर) और अन्य व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता का प्रकाश करता हूँ जिनके सौजन्य से इस बड़े ग्रन्थ का हिन्दी संस्करण तैयार हो पाया है।
महर्षियों का आशीर्वाद सदा हमारे साथ रहे, यह मेरी हार्दिक कामना है। प्रेम तथा ॐ सहित
आपका प्रात्म-स्वरूप
१६ पार्क एरिया, करौल बाग, नयी दिल्ली। ७-११-१६५७ ( पूर्णिमा)
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