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आलोचनात्मक मूल्यांकन
"धुत्तहि किज्जइ कासउ पंडरु ।" (69:33) -धूतों द्वारा काला पीला किया जाता है।
करुणांत काध्य
रामायण का अन्त करुण और शोकपूर्ण है। रावण के निधन पर, रनिवास इन शब्दों में आर्तनाद कर उठता है
"हा भत्तार हार मणरंजण, हा भालयल-तिलय प्रयणंजन । हा करफंसअणियरोमंजुम, मालिगणकीलाभूसियभुय । पर विणु अगि सास जिजह, संपरदुखसमूह सहिज्जा। हा पिययम भणंतु सोमायर,
कंबह गिरवसेस प्रतेउव।" (78/22) विभीषण का शोक भला किसके हृदय को द्रवीभूत नहीं कर देगा ! वह अपनी छाती पीटपीटकर रोता है
___ "हाय मैंने यह क्या भयंकर काम किया ! अब सरस्वती शास्त्र की रचना नहीं कर सकती, अब कीति दसों दिशाओं में नहीं घूमेगी । विजयलक्ष्मी आग विधवापन को प्राप्त हो गई। शक्ति का प्रवर्तन आज समाप्त हो गया। अब इन्द्र बरकर नही चलेगा । अब चन्द्र अपनी कांति के साथ होगा। अब सूरज भाकाश में खुद चमकेगा । आज कपीन्द्र आराम से सोएगा।" (78/23)
रामायण : कवि का प्रतिनिधि काव्य
जैसाकि कहा जा चुका है 'महापुराण' कई चरित-काव्यों का संकसन मन्य है। 'नाभेय चरिउ' पुष्पदंत का बृहद् चरित-काव्य है, उसमें उनकी प्रतिभा पूर्ण निखार पर है। परन्तु दूसरे चरित-काव्यों में भी उनकी सृजनात्मकता और उसके तत्वों का समावेश है।
जब पुष्पदन्त कहते हैं कि 'रामायण मा पोमचरित (पद्मचरित) को कहते हुए मैं अपनी बुद्धि के विस्तार में कमी नहीं करूंगा और मंत्री भरत के अम्पथित बचन का निर्वाह करूंगा', तो इसका अर्थ है कि रामायण के वर्णन में वह अपनी प्रतिभा का सर्वोत्तम प्रयोग करेंगे। एक बार फिर, कवि रामकथा के पूर्व कवियों का स्मरण करता है और आत्म-विनय एवं दुर्जननिन्दा के साथ विद्वत-सभा से क्षमायाचना पूर्वक 'रामकथा' प्रारम्भ करता है । वह यह भी कहता है कि जब सुकवि (कपि और कदि) द्वारा प्रकाशित मार्ग पर चलते हुए रावण भी चौंक जाता है, तो राम के धम्मगुण (धर्म और धनुष के गुण) के शब्द को सुनकर, अमुख दुर्जन कहाँ पहुंच सकता है ? भंगिमा मे कवि बता रहा है कि वह पूर्व कवियों द्वारा प्रकाशित काव्य-मार्ग पर चलकर ही रामायण की रचना कर रहा है। वह यह भी कहता है कि "मैं तो जिनवर के चरण-कमलों का भ्रमर हूँ। मेरे द्वारा गुनगुनाया यह यद्यपि गिरर्थक है, फिर भी यह सुनने में कोगल, कानों को सुसा देनेवाला और मानिनी स्त्रियों और शिणुओं के मुखों को विकसित करनेवाला है।"