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महाकवि पुष्पदंत कृत महापुराण
प्रजापति राजा कहता है जो व्यक्ति अज्ञानी और न्याय का विध्वंश करनेवाला है, वह अपने को राज्यधर क्यों कहता है ?
अपनी प्रशंसा करना गुण का दूषण है। मिध्यादर्शन तप का दूषण है। नीरस प्रदर्शन नट का दुषण है। ब्याकरण रहित काध्य कवि का दूषण है । गुण्डों और दुष्टों को पालना धन का दूषण है। द्विविधामरण यत का दूषण है । जोर से बोलना युवती का दूषण है । चुगसी और विच्छिन्न बुद्धि पंडित का दूषण है । राजा का मूखं और आलसी होना लक्ष्मी का दूषण है। पाप करना और खोटे मार्ग में चलना जनता का दुषण है । अकारण हँसना गुरु का दूषण है । बेटे का दुर्व्यसनी होना कुल का दूषण है। (69/7)
"अपरहमें किस्जद कम्मरइ
जा सा गिद्दहहण कासु मद।" (6989) -जो कार्य को गति अति शीघ्र की जानेवाली है, वह किसे दाह उत्पन्न नहीं करती?
"गुरु चवद ए किर कित्ता
मतिमा सरसप अंतड।" (69/19) –मन्त्री कहता है—यह तो कितना है, मेरे लिए तो यह त्रिभुवन सरसों के बराबर है।
"जहि कंकु रायसु व गणित एरंडकप्प रुक्स व भणिउ । जहि गुणवंतु वि बोसिहल्ल सम्
तहि जे निरर्यति ययविरम् ।" (72/11) -जहाँ बगुले को राजहंस समझा जाता हो और एरंड को कल्पवृक्ष कहा जाता हो, जहाँ गुणों को दोषवाला कहा जाता हो वही जो चुप रहते हैं, वे विद्वान हैं।
"वारिज्जइ टुक्को केण णियह ।" (73/19) —आई हुई नियति को कौन टाल सकता है ?
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"हा कठ्ठ-कट्ट कणएं अडिज
माणिक्कु अमेज्झमझि पडिउ ।" (74/11) -खेद है कि काठ को सोने से जड़ दिया गया । माणिक्य गन्दी जगह गिर गया।
"को नगद रयंघो एलियाण दुग्गं ।" (74/12) -कौन पापाग्ध (आत्मरक्षा के लिए) गाडरों का दुर्ग चाहेगा?
__ "को रंडकहाणियाउ सुणई"174712) -कौन राों की कहानियां सुनता है ?