Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ पदेसविहत्ती ५
भागवड - हाणि अवद्वि० केत्तिया १ अनंता । एवं तिरिक्खा ० । आदेसेण णेरइएस मोह० असंखे० भागवड्डि-हाणि अवधि ० के ति० ? असंखेजा । एवं सव्वणेरइय-सव्वपंचिदियतिरिक्ख माणुस - मणुसअपज ० -देवा भवणादि जाव अवराइदा त्ति । मणुसपजत्त मणुसिणीसु मोह० असंखे ० भागवड्डि- हा० - अवट्ठि केत्ति ० १ संखेजा । एवं सव्वट्ठे । एवं जाव अणाहारिति ।
S ६५. खेत्ताणु ० दुविहो णि० - ओघेण आदेसे० । ओघेण मोह० असंखे० भागवड्डि- हा० - अवडि० के० खेत्ते ? सव्वलोगे । एवं तिरिक्खा ० । आदेसेण णेरइए० मोह ० असंखे०भागवड्डि-हाणि- अवहि० केव० खेते ? लोग० असंखे ० भागे । एवं सव्वणेरइयसव्वपंचिं ० ति रिक्ख - सव्वमणुस - सव्वदेवा ति । एवं जाव अणाहारि ति ।
६ ६६. पोंसणाणु • दुविहो णि० - ओघेण आदेसे ० । ओघेण मोह० असंखे ० भागड्ड हा० - अवट्टि ० विह० के० खेत्तं पोसिदं १ सव्वलोगो । एवं तिरिक्खा० । आदेसेण इए • मोह० असंखे ० भागवड्डि- हाणि-अवट्ठि० केव० खेत्तं ० १ लोगस्स असंखे० भागो
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हैं ? अनन्त हैं । इसी प्रकार सामान्य तिर्यों में जानना चाहिए । आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी असंख्यात भागवृद्धि, असं ख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अस ंख्यात हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्यन, सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासीसे लेकर अपराजित तकके देवों में जानना चाहिए । मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियों में मोहनीयकी असख्यात भागवृद्धि, असं ख्यात भागहानि और अवस्थित विभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि में जानना चाहिए । इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त जानना चाहिये ।
विशेषार्थ — परिमाणानुगममें ज्ञातव्य बात इतनी ही है कि ओघसे तो तीनों विभक्तिवाले अनन्त हैं । यही बात सामान्य तिर्यञ्चोंकी है। आदेशसे जिस गतिकी जितनी संख्या है उसी हिसाब से वहाँ तीनों विभक्तिवाले जीव हैं
६ ६५. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोक क्षेत्र है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यश्र्चों में जानना चाहिए । आदेशसे नारकियों में मोहनीयकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सब देवोंमें जानना चाहिए । इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये ।
६६. स्पर्शानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश | ओघसे मोहनीयकी असंख्यात भाग वृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यश्वों में जानना चाहिये । आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवालोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और
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