Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ॐ इथिवेदस्स उकस्सयं पदेससंतकम्म कस्स ? . १०८. सुगमं ।
गुणिदकम्मंसिओ असंखे०वस्साउए गदो तम्मि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण जम्हि पूरिवो तस्स इत्थिवेदस्स उकस्सयं पदेससंतकम्म ।
६१०९. गुणिदकम्मंसिओ ति भणिदे जो जीवो वेसागरोवमसहस्सेहि सादिरेगेहि ऊणियं कम्महिदि गुणिदकम्मंसियलक्खणेण अच्छिदो। पुणो तसकाइएसु उप्पजिय पलिदोवमस्स असंखे०भागेणूणतसहिदिमच्छिदो तस्स गहणं कायव्वं । कुदो ? अण्णहागुणिदकम्मंसियत्ताणुववत्तीदो। दीहासु इथिवेदबंधगद्धासु उक्कस्सजोगसंकिलेससहगदासु जहणियासु पुरिस-णqसयवेदबंधगद्धासु जहण्णजोगसंकिलेससहगदासु परिभमिदो त्ति भणिदं होदि । पदेससंचओ भुजगारकाले चेव अप्पदरकाले समयं पडि दुकमाणकम्मक्खंधेहिंतो अधहिदीए परपयडिसंकमेण च ओसरंतकम्मक्खंधाणं बहुत्तुवलंभादो। तम्हा कम्मट्ठिदिमेत्तकालहिंडावणे ण किं पि फलं पेच्छामो। ण च कम्महिदिमेत्तो भुजगारकालो अस्थि, तस्स उकस्सस्स वि पलिदो० असंखे०भागपमाणत्तादो त्ति ? ण, सुत्ताहिप्पायाणवगमादो । गुणिदकम्मंसियम्मि अप्पदरकालादो जेण भुजगारकालो बहुओ तेण भुजगारकालसंचिददव्वस्स अप्पदरकालब्भंतरे ण णिम्मलप्फलओ त्ति
* स्त्रीवेदका उत्कुष्ट प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? ६ १०८. यह सूत्र सुगम है।
जो गुणितकर्मा शवाला जीव असंख्यात वर्षकी आयु वालोंमें उत्पन्न हुआ, वहाँ जिसने पल्यके असंख्यातवें भागमात्र आयु को लेकर स्त्रीवेदको पूरा किया उसके स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है।
६१०९. 'गुणित कर्मा शवाला' कहनेसे जो जीव कुछ अधिक दो हजार सागर कम कर्मस्थिति कालतक गुणितकर्मा शवाले जोवका जो लक्षण है उससे युक्त रहा अर्थात् गुणित काशकी सामग्रीसे सहित रहा । फिर त्रसकायिकोंमें उत्पन्न होकर वहाँ पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम त्रसस्थिति काल तक रहा, उसका ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि अन्यथा उसके गुणितकर्मा शपना नहीं बन सकता । इसका यह मतलब हुआ कि उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट संक्लेशके साथ स्त्रीवेदके सुदीर्घ बन्धककालमें घूमा और जघन्य योग और जघन्य संक्लेशके साथ पुरुषवेद और नपुसकवेदके जघन्य बन्धकालमें घूमा।
शंका-कर्मप्रदेशोंका संचय भुजगारकालमें ही होता है, क्योंकि अल्पतरकालमें प्रति समय आनेवाले कर्मस्कन्धोंसे अधःस्थितिगलनाके द्वारा तथा अन्य प्रकृतिरूप संक्रमणके द्वारा जानेवाले कर्मस्कन्ध अधिक पाये जाते हैं, अतः कर्मस्थिति कालतक भ्रमण कराने में हम कोई भी लाभ नहीं देखते । शायद कहा जाय कि भुजगारका काल कर्मस्थितिप्रमाण है। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि भुजगारका उत्कृष्ट काल भी पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है।
समाधान-यह शंका उचित नहीं है, क्योंकि आपने सूत्रका अभिप्राय नहीं समझा। गुणितकर्मा शमें यतः अल्पतरके कालसे भुजगारका काल बहुत है, अतः भुजगार कालमें संचित
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