Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ तिरयणजणिदकम्मणिजरा होदि त्ति जाणावणडं तसेसु आगदो ति भणिदं । थावरकाएसु तिरयणाणि किण्ण उप्पजंति ? अच्चंताभावेण पडिसिद्धत्तादो। भव्वजीवकम्मणिजरावियप्पपदुप्पायणटुं संजमासंजम' संजमं सम्मत्तं च बहुसो लक्ष्ण चत्तारि वारे कसाए उवसामेदूण त्ति भणिदं । एत्थ बहुसो त्ति जदि वि सामण्णणि सो कदो तो वि पलिदो० असंखे०भागमेत्ताणि चेव तिरिक्ख-मणुस्सेसु संजमासंजमकंडयाणि । सम्मत्तकंडयाणि पुण देवेसु चेव पलिदो० असंखे०भागमेत्ताणि । एदाणि तिरिक्ख-मणुस्सेसु किण्ण घेप्पंति ? ण, तत्थेदेसु संतेसु संजमासंजमसंजमकंडयाणमण्णत्थ असंभवाणमभावप्पसंगादो । सम्मत्ते ति वुत्ते अणंताणुबंधिचउक्कविसंजोयणा घेत्तव्बा, सहचारादो । संजमकंडयाणि अह चेव मणुस्सेसु । एदेसिमेत्तिया चेव संखा होदि ति कुदो णव्वदे ? सुत्ताविरुद्धाइरियवयणादो वेयणादिसुत्तेहिंतो वा । तसेसु आगंतूण संजमासंजम-सम्मत्तेसु पलिदो० असंखे०भागमेत्तं कालमच्छदि त्ति ण घडदे, तिरिक्खेसु संजमासंजमस्स देसूणपुव्वकोडीए अहियकालाणुवलंभादो । ण, तिरिक्खेसु संजमासंजममणुपालिय दसवस्ससहस्साउहुई है। त्रसोंमें ही रत्नत्रयके निमित्तसे कर्मोकी निर्जरा होती है यह जतानेके लिये 'त्रसोंमें आया' यह कहा।
शंका-स्थावरकायिक जीवोंको रत्नत्रयकी प्राप्ति क्यों नहीं होती ? समाधान-अत्यन्ताभाव होनेसे वहां इसकी प्राप्तिका निषेध है।
भव्य जीवोंके कर्मनिर्जराके विकल्पोंका कथन करनेके लिये 'संयमासंयम, संयम और सम्यक्त्वको अनेकबार प्राप्तकर तथा चार बार कषायोंका उपशमकर' यह कहा । यहाँ सूत्रमें यद्यपि 'अनेकबार' ऐसा सामान्य निर्देश किया है तो भी संयमासंयमकाण्डक पल्यके असंख्यातवें भाग बार तियच और मनुष्योंमें ही होते हैं। किन्तु सम्यक्त्वकाण्डक पल्यके असंख्यातवें भागबार देवोंमें ही होते हैं।
शंका-ये सम्यक्त्वकाण्डक तिर्यश्च और मनुष्योंमें क्यों नहीं ग्रहण किये जाते ?
समाधान नहीं, क्योंकि वहाँ इनको मान लेने पर संयमासंयम और संयमकाण्डक अन्यत्र सम्भव नहीं, इसलिये इनका अभाव प्राप्त होता है। सूत्रमें 'सम्यक्त्व' ऐसा कहने र इस पदसे अनन्तानुबन्धी चारकी विसंयोजना लेनी चाहिये, क्योंकि सम्यक्त्वके साथ इसका सहचार अविनभाव सम्बन्ध है । अर्थात् सम्यक्त्वके सद्भावमें ही अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना पाई जाती है। संयमकाण्डक आठों ही मनुष्योंमें होते हैं।
शंका-इन सबकी इतनी ही संख्या होती है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-सूत्राविरुद्ध अचार्यों के वचनसे या वेदना आदिमें आये हुए सूत्रोंसे जाना जाता है।
शंका-सोंमें आकर संयमासंयम और सम्यक्त्वके साथ पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक रहता है यह बात नहीं बनती, क्योंकि तिर्यचोंमें संयमासंयम कुछ कम पूर्वकोटिसे अधिक काल तक नहीं पाया जाता ?
समधान-नहीं, क्योंकि 'तियचोंमें संयमासंयमका पालनकर, फिर दस हजार वर्ष
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