Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
उत्तरपथ डिपदेस विहत्तीए सामित्तं
२५१
हिदिदेवे सुजिय सम्मत्तं घेत्तूण अनंताणुबंधिविसंजोयणाए तत्थ कम्मणिञ्जरं करिय एइ दिए गंतूण पलिदो० असंखे० भागमेत्तकालेण हदसमुप्पत्तियं कम्मं काऊणे ति परियदृणेण तेसिं पलिदो० असंखे० भागमेत्तवाराणमुवलं भादो । कुदो एदं णव्वदे ? उवरिमदेसामासियसुत्तादो | कसायउवसामणवारा जेण चत्तारि चेव उक्कस्सेण तेण चत्तारि वारे कसा उवसामिण एइंदिएसु गदो ति णिहिं । एवं दिएसु पलिदो ० असंखे० भागमेत्तकाले विणा कम्मं हदसमुप्पत्तियं ण होदि त्ति जाणावणहं एइंदिएस पलिदो ० असंखे० भागमच्छिदूण कम्मं हदसमुप्पत्तियं काऊण कालं गदो ति भणिदं । जेणेदं पलिदो० असंखे० भागग्गहणं देसामासियं तेण संजमं घेत्तूण देवेसुप्प जिय तत्थ सम्मत्तं पडिवज्ञ्जिय पुणो एइंदिए गंतूण तत्थ पलिदो ० असंखे ० भागमे त्तकाले कम्म हदसमुप्पत्तियं काऊण णिप्पिडिदि त्ति सव्वत्थ वत्तव्वं । उदयावलिय हिदीणं खवणादिसु हिदिखंडयघादो णत्थि त्ति जाणावहं अपच्छिमे डिदिखंडए अवगदे अहिदिगणाए उदयावलियाए गलतीए त्ति भणिदं । खविदकम्मं सियलक्खणेणागंतूण पलिदो ० असंखे० भागमेत संजमासंजमकंडयाणि तत्तो विसेसाहियमेत्ताणि अणंताणुबंधिविसंजोयणकंडयाणि अड्ड संजमकंडयाणि चदुक्खुत्तो कसायउवसामणाओ करिय आगंतूण पुणो सुहुमणिगोदेसुववज्ञ्जिय तत्थ पलिदोवमस्स असंखेभागमेत्तकालेण
आयुवाले देवों में उत्पन्न हो और सम्यक्त्वको प्राप्त कर अनन्तानुबन्धी चारकी विसंयोजना द्वारा वहाँ कर्मोंकी निर्जराकर फिर एकेन्द्रियोंमें जाकर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा कर्मको हतसमुत्पत्तिक करके इस प्रकार परिवर्तन द्वारा वे पल्यके असंख्यातवें भाग बार पाये जाते हैं ।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान — उपरिम देशामर्षक सूत्रसे जाना जाता है ।
चूंकि कषायोंके उपशमानेके बार अधिकसे अधिक चार ही हैं, इसलिये 'चार बार कषायोंको उपशमाकर एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ' यह कहा है । एकेन्द्रियोंमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके बिना कर्म हतसमुत्पत्तिक नहीं होता, यह बात जतानेके लिये 'एकेन्द्रियों में पल्यके असंख्यातवें भाग काल तक रहकर और कर्मको हतसमुत्पत्तिक करके मरा' यह कहा है । चूंकि सूत्रमें जो पल्यके असंख्यातवें भाग इस पदका ग्रहण किया है सो यह पद देशामर्षक है, इसलिये सर्वत्र संयमको ग्रहणकर, अनन्तर देवोंमें उत्पन्न होकर वहां सम्यक्त्वको प्राप्तकर फिर एकेन्द्रियों में जाकर वहां पल्यके असंख्यातवें कालके द्वारा कर्मको हतसमुत्पत्तिक करके वहाँसे निकलता है यह कथन करना चाहिये । उदद्यावलिको प्राप्त स्थितियोंका क्षपणा आदिके समय स्थितिकाण्डकघात नहीं होता इस बातके जताने के लिये 'अन्तिम स्थितिकाण्डकके घात हो जानेपर अधःस्थितिगलनाके द्वारा उदयावलिके गलते समय' यह कहा है । क्षपितकर्माशकी विधिसे आकर फिर पल्यके असंख्यातवें भाग बार संयमासंयमकाण्डकों को, उससे विशेष अधिक बार अनन्तानुबन्धीके विसंयोजनाकाण्डकों को, आठ बार संयमकाण्डकोंको धारण कर अनन्तर चार बार कषायोंको उपशमाकर आया और सूक्ष्म निगोदियों में उत्पन्न हुआ। वहां पल्यके असंख्यातवें भाग कालके द्वारा कर्मको
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