Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 401
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ जह० पदे० कस्स ? अण्ण० जो खविदकम्मंसिओ विवरीयं गंतूण णेरइएसुववण्णो तस्स पढमसमय उववण्णल्लयस्स । एवं पुरिसवेद-हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं । णवरि अंतोमुहुत्तमुववण्णस्स पडिवक्खबंधगद्धाचरिमसमए जहण्णयं पदेससंतकम्मं । एवं सत्तमाए पुढवीए । पढमादि जाव छहि त्ति एवं चेव । णवरि मिच्छत्तित्थि-णउंसयवेदाणं चरिमसमयणिप्पिदमाणस्स । ४४९. तिरिवखगदीए तिरिक्खेसु मिच्छत्तस्स जह० पदे०वि० कस्स ? अण्ण. जो खविदकम्मंसिओ विवरीयं गंतूण तिपलिदोवमिएसु तिरिक्खेसुववण्णो। सव्वलहुं सम्मत्तं पडिवण्णो। अंतोमुहुत्तेण अणंताणुबंधिचउक विसंजोएदूण तत्थ भवहिदि तिपलिदोवममणुपालेदूण चरिमसमयणिप्पिदमाणस्स जहण्णय संतकम्मं । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-बारसकसाय-सत्तणोकसायाणं जरइयभंगो। अणंताणुबंधिचउक्क० जह० कस्स ? अण्ण. जो खविदकम्मंसिओ विवरोदं गंतूण दीहाउहिदिएसु तिरिक्खेसुबवण्णो । अंतोमुहुत्तेण सम्मत्तं पडिवण्णो । पुणो अणंताणुबंधिचउकं विसंजोइय संजुत्तो होदूण सबलहुं सम्मत्तं पडिवण्णो । तत्थ य भवहिदिआउअमणुपालिदूण थोवावसेसे जीविदव्वए ति अणंताणुबंधिचउक्क विसंजोइदं आढत्तो। तत्थ चरिमे हिदिखंडए अवगदे एया हिदी दुसमयकालढिदिया जस्स सेसा तस्स जहण्णयं संतकम्म। कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसत्कम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकौशिक जीव विपरीत जाकर नारकियों में उत्पन्न हआ उसके उत्पन्न होने के प्रथम समयमें उक्त प्रकृतियोंका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। इसी प्रकार पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति और शोकके जघन्य प्रदेशसत्कर्मका स्वामी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि उत्पन्न होनेके अन्तर्मुहूर्त बाद प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धक कालके अन्तिम समयमें इनका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। पहलीसे लेकर छठी पृथिवी तक इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसक्वेद का जघन्य स्वामित्व वहाँसे निकलनेके अन्तिम समयमें कहना चाहिए। ६४४९. तियश्चगतिमें तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो अन्यतर क्षपितकांशिक जीव विपरीत जाकर तीन पल्यकी आयुवाले तिर्यश्चोंमें उत्पन्न हुआ । अतिशीघ्र सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । अन्तर्मुहूर्तके द्वारा अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करके वहाँ पर तीन पल्यप्रमाण भवस्थितिका पालनकर वहाँसे निकलनेके अन्तिम समयमें उसके मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंका भङ्ग नारकियोंके समान है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य प्रदेशसत्कर्म किसके होता है? जो अन्यतर क्षपितकांशिक जीव विपरीत जाकर दीर्घ आय स्थिति वाले तिर्यश्चोंमें उत्पन्न हुआ। अन्तमुहूर्तके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पुनः अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजनाकर और संयुक्त होकर अतिशीघ्र सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पुनः भवस्थिति काल तक आयुका पालन कर स्तोक जीवितव्यके शेष रहने पर अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजनाके लिए उद्यत हुआ। वहाँ अन्तिम स्थितिकाण्डकके व्यतीत हो जाने पर जिसके दो समय कालप्रमाण स्थितवाली एक स्थिति शेष है उसके अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। स्त्रीवेद और नपुसकवेदका जघन्य प्रदेशसत्कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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