Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 327
________________ ३१६ जयधषलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ दोसो, चरिमसमयसवेदे उकस्सजोगे संते दुचरिमसमयसवेदस्स जं पाओग्गं जहण्णजोगहाणं तस्सेत्थ गहणादो। एदस्स चेव एत्थ गहणं होदि, ओघजहण्णस्स ण होदि त्ति कुदो णव्वदे १ तंतजुत्तीदो सुत्ताविरुद्धवक्खाणाइरियवयणेण वा । चरिमसमयसवेदेण बद्धसमयपबद्धस्स चरिम-दुचरिमफालोओ दुचरिमसमयसवेदेण बद्धसमयपबद्धस्स चरिमफालिं च धरेदण पुव्विल्लसमयादो हेट्ठा ओदरिय हिदतिण्णिफालिक्खवगदव्वं पुग्विल्लदव्वादो असंखे०भागब्भहियं, उकस्सजोगेण बद्धदोचरिमफालीसु सरिसा त्ति अवणिदासु उक्कस्सजोगेण बद्धदुचरिमफालीए सह जहण्णजोगेण बद्धचरिमफालीए अहियत्तवलंभादो। ३५८. संपहि अंतरपमाणपरूवणहमिमा परूवणा कीरदे । तं जहा—उकस्सजोगपक्खेवभागहारभूदसेढीए असंखे भागमेत्तदुचरिमफालीओ चरिमफालिपमाणेण कस्सामो। तं जहा-रूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तद्चरिमफालीणं जदि एगा चरिमफाली' लब्भदि तो सेढीए असंखे०भागमेत्तदुचरिमफालीणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए उकस्सजोगट्टाणपक्खेवभागहारं रूवणअधापवत्तभागहारेण जघन्य योगवाला नहीं हो सकता, क्योंकि अत्यन्त अभाव होनेसे उसका प्रतिषेध है ? समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अन्तिम समयवर्ती सवेदी जीवके उत्कृष्ट योगके रहते हुए उपान्त्य समयवर्ती सवेदी जीवके योग्य जो जघन्य योगस्थान होता है उसका यहां पर ग्रहण किया गया है। शंका-इसीका यहां पर ग्रहण होता है ओघ जघन्यका नहीं होता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-आगम और युक्तिसे तथा सूत्रके अवरोधी आचार्य वचनसे जाना जाता है। अन्तिम सममवर्ती सवेदी जीवके द्वारा बाँधे गये समयप्रबद्धकी अन्तिम और . उपान्त्य फालियोंको तथा उपान्त्य समयवर्ती सवेदी जीवके द्वारा बाँधे गये समयप्रबद्धकी अन्तिम फालिको ग्रहण करके पहलेके समयसे नीचे उतरकर स्थित हुआ तीन फालियों सम्बन्धी क्षपक द्रव्य पहलेके द्रव्यसे असंख्यातवें भागप्रमाण अधिक है, क्योंकि उत्कृष्ट योगके द्वारा बाँधी गई दो चरम फालियाँ समान हैं ऐसा जान कर उनके अलग कर देने पर उत्कृष्ट योगके द्वारा बाँधी गई उपान्त्य फालिके साथ जघन्य योगके द्वारा बाँधी गई अन्तिम फालि अधिक उपलब्ध होती है। ६३५८. अब अन्तरके प्रमाणका कथन करनेके लिये यह प्ररूपणा करते हैं। यथाउत्कृष्ट योगके प्रक्षेपके भागहाररूप जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण द्विचरम फालियोंको अन्तिम फालिके प्रमाणरूपसे करते हैं। यथा-एक कम अधःप्रवृत्तभागहारप्रमाण द्विचरम फालियोंकी यदि एक चरमफालि प्राप्त होती है तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण द्विचरम फालियोंमें क्या प्राप्त होगा इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर उत्कृष्ट योगस्थानके प्रक्षेपभागहारको एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित कर १. आप्रतौ 'एगो चरिमफाली' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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