Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 357
________________ ३४६ जयधबळासहिदे कसायपाहुडे [ पसविहत्ती ५ भादो । पुणो एदाओ चरिमफालिपमाणेण कीरमाणाओ रूवूणअधापवत्त भागहारेणोदिसादिरेयउकस्सजोगड्डाणपक्खेत्र भागहारमेत्ताओ होंति तितिभागूणुक्कस्स'जोगट्टाणादो द्वा एगफालिक्खयगो एत्तियमेत्तमद्भाणमोदारेयव्वो । एवमोदारिदे एवं छप्फा लिखवगट्ठाणं तिणिफालिक्खवगस्स उक्कस्सहाणेण सरिसं होदि । $ ३८९. संपद्दि एगफालिक्खवगो अधापवत्तभागहारमेतजोगहाणाणि पुणरवि ओदारे दव्व, अण्णा णिरुद्धतिष्णिफालिखवगहाणेण सरिसत्ताणुववत्तोदो । एवं सरिसं करिय पणो दोफालिक्खवगे पक्खेवुत्तरजोगं णीदे दुचरिमफालिहरणमुप्पञ्जदि । पुणो एमेत्थेव हविय एगफालिक्खवगो पक्खेवुत्तरकमेण दुखवूणअधापवत्तभागहारमेत्तजोगद्वाणाणं परिवाडीए नेदव्वो । एवं णीदे तिष्णिकालिक्खवगस्स सव्वचरिमफालिहाणंतरेसु दचरिमफालिद्वाणाणि उप्पण्णाण होंति । पुणरवि एगफालिक्खवगो पक्खेवुत्तरकमेण वड्डावेदव्वो जाव उक्कस्सजोगहाणं पत्तो त्ति | संपहि दोफालिक्खवगं तिभागूणुकस्सजोगम्मि दुविय चरिमफालिद्वाणं कादूणेदम्हादो सवेदतिचरिम- दुचरिमसमएसु तिमागूणुकस्सजोगेण चरिमसमए उकस्साजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसम दिस्स छप्फालिद्वाणं विसेसाहियं चडिदद्वाणमेतचरिमतिचरिमफालीणम हियत्तवलंभादो । द्विचरम फालियों की अधिकता उपलब्ध होती हैं। पुनः इनको चरम फालिप्रमाणसे करने पर वे एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित साधिक उत्कृष्ट योगस्थानके प्रक्षेप भागहारमात्र होती हैं, इसलिए विभाग कम उत्कृष्ट योगस्थानसे नीचे एक फालिक्षपकको इतना मात्र उतारना चाहिए । इस प्रकार उतारनेपर यह छह फालिक्षपकस्थान तीन फालिक्षपक के उत्कृष्ट स्थानके समान होता है । अध्वान $ ३८९. अब एक फालिक्षपकको अधःप्रवृत्तभागहारमात्र योगस्थानप्रमाण फिर भी उतारना चाहिए, अन्यथा रुके हुए तीन फालिक्षपकस्थानके साथ समानता नहीं बन सकती । इस प्रकार समान करके पुनः दो फालिक्षपकके प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराने पर द्विचरम फालिस्थान उत्पन्न होता है । पुनः इसे यहीं पर स्थापित करके एक फालिक्षपकको एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र योगस्थानों की परिपाटी से ले जाना चाहिए। इसप्रकार ले जाने पर तीन फालिक्षपकके सब चरम फालिस्थानोंके अन्तरालों में द्विचरमफालिस्थान उत्पन्न होते हैं। अब फिर भी एक फालिक्षपकको उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक एक एक प्रक्षेप अधिक के क्रमसे बढ़ाना चाहिए | अब दो फालिक्षपकको तृतीय भाग कम उत्कृष्ट योग में स्थापित कर नरम फालिस्थानको करके इससे सवेदभागके त्रिचरम और द्विचरम समयोंमें तृतीय भागकम उत्कृष्ट योगसे चरम समय में उत्कृष्ट योगसे बन्ध कराकर अधिकृत त्रिचरम समय में जो स्थित है उसकेछद फालिस्थान विशेष अधिक होता है, क्योंकि आगे गये हुए अध्वानमात्र द्विचरम और चरम त्रिफालियों की अधिकता उपलब्ध होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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