Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 387
________________ ३७६ . जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ संतस्स चरिमहिदिखंडयस्स कुदो चरिमसमयविणहत्तं ? ण, दव्वटियणयावलंबणाए संतस्सेव विणहत्तदंसणादो। 8 तस्स दुचरिमसमयसवेदस्स जहणणगं संतकम्ममादि कादूण जाव पुरिसदस्स मोघुक्कस्सपदेससंतकम्म ति एदमेगं फयं । ४३०. पुव्वं वड्डाविदसव्वदव्वं पेक्खिदण असंखेजगुणत्तादो । ण च असंखेजगुणत्तमसिद्धं, तिण्हं वेदाणं दिवड्डगुणहाणिमेत्तएइंदियसमयपबद्धेहि चरिमफालीए णिप्पण्णत्तादो। एदं जहण्णसंतकम्ममादि कादण जाव ओघकस्ससंतकम्म ति एर्ग फद्दयमिदि णेदं घडदे । अधापवत्तकरणचरिमसमयहिदिसंतकम्ममादि कादूण जाव पुरिसवेदस्स ओघकस्ससंतकम्मं ति एगं फद्दयमिदि वत्तव्वं, दुचरिमसमयसवेदस्स जहण्णसंतकम्मं पेक्खिदण अधापवत्तकरणचरिमसमयपुरिसवेददव्वस्स संखेजगुणहीणत्तवलंभादो। जं जहण्णं दव्व तं फद्दयस्स आदी होदि ण महल्लं, अव्ववत्थापसंगादो त्ति ? एत्थ परिहारो उच्चदे। तं जहा-चरिमसमयसवेदो त्ति उत्ते अधापवत्तकरणचरिमसमयसवेदस्स ग्गहणं, एगजीवदव्वं पडि भेदाभावादो। एदस्सेव गहणं होदि त्ति कुदो णव्वदे १ तस्स जहण्णगं संतकम्ममादि कादूण त्ति सुत्तवयणादो। शंका-सवेद भागके द्विचरम समयमें सद्रप चरम स्थितिकाण्डकका चरम समयमें विनाश होना कैसे है ? समाधान नहीं, क्योंकि द्रव्यार्थिक नयका अवलन्बन लेने पर सद्रूपका ही विनाश होना देखा जाता है। * इस द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवके जघन्य सत्कर्मसे लेकर पुरुषवेदके ओघ उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मके प्राप्त होने तक यह एक स्पर्धक है। ६४३०. क्योंकि पहले बढ़ाये गये सब द्रव्यकी अपेक्षा यह असंख्यातगुणा है। इसका असंख्यातगुणा होना असिद्ध है यह बात नहीं है, क्योंकि तीनों वेदोंके डेढ़ गुणहानिमात्र एकेन्द्रि यसम्बन्धी समयप बद्धोंसे चरम फालि निष्पन्न हुई है। __ शंका-इस जघन्य सत्कर्मसे लेकर ओघ उत्कृष्ट सत्कर्म तक एक स्पर्धक है यह घटित नहीं होता, इसलिए अधःप्रवृत्त करणके चरम समयवर्ती स्थितिसत्कर्मसे लेकर पुरुषवेदके ओघ उत्कृष्ट सत्कर्मके प्राप्त होने तक एक स्पर्धक है ऐसा कहना चाहिए, क्योंकि द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवके जघन्य सत्कर्मको देखते हुए अधःप्रवृत्तकरणके चरम समयवर्ती पुरुषवेदका द्रव्य संख्यातगुणा हीन उपलब्ध होता है । जो जघन्य द्रव्य है वह स्पर्धकको आदि होता है। बड़ा द्रव्य नहीं, क्योंकि अन्यथा अव्यवस्थाका प्रसंग आता है ? समाधान-यहां पर इस शंकाका परिहार करते हैं । यथा-चरम समयवर्ती सवेदी ऐसा कहने से अधःप्रवृत्तकरणके चरमसमयवर्ती सवेदी जीवका ग्रहण किया है, क्योंकि एक जीव द्रव्यके प्रति इनमें कोई भेद नहीं है। शंका-इसीका ग्रहण होता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान—'उसके जघन्य सत्कर्मसे लेकर' इस सूत्रवचन से जाना जाता है। Jain Éducation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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