Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 365
________________ जयधवलास हिदे कसाय पाहुडे [ पसविहत्ती ५ दोफालिक्खवगं ६ ३९८. संपहि चरिमफालिहाणेण समाणत्तविहाणढं जहण्णजोगम्मि हविय समीकरणं कस्सामो । तं जहा - सवेददुचरिमसमए जहण्णजोगेण चरिमसमए असंखेज्जगुणजोगेण बंधिय अधियार चरिमसमए द्विदखवगहाणं पुव्विल्लहाणादो विसेसाहियं चडिदद्वाणमेतदुचरिमफालीणम हियत्तवलंभादो । संपहि अघापवत्तभागहारेण खंडिदचडिदद्वाणमेतं दोफा लिक्खगमोदारिय पुणो दुरूवूणअधाप्रवत्तभागहारमेत्त पक्खेवाहियजोगट्टाणं णीदे पुणरुतदु चरिमफालिट्ठाणं होदि । पहि इमं त्वयि पुणो एगफालिखवगो पक्खेउत्तरादिकमेण वढावेदव्वो जाव दोफोलिक्खवगजोगाणादो असंखेजगुणं जोगं पत्तोति । ३५४ ९ ३९९. संपहि एत्थ ट्ठविय पुव्वं च समीकरणं कायव्वं । एवं एदेण कमेण ताव वड्ढावेदव्वं जाव संखेजपरियट्टणवाराओ गंतूण अद्धजोगं पत्तोति । एवं वड्डाविजमाणे एगफालिखव कम्मि उह से संते एगफालिखवगस्स उकस्सहाणादो हेड्डा दुचरिमफालिडाणाणि समुपाणित्ति भणिदे जाधे दोफालिख वगो अद्धजोगादो उवरि दुरूवूणधापवत्तभागहार मे स पव खेवाहियजोगं गदो, एगफालिखवगो वि रूदृणधापवत्तभागहारेण अद्धजोगपक्खेव भागहारं खंडिदेयखंडमेतं पुणो रूऊणधापवत्तभागहारमेत्तं च अद्धजोगादो हेडा ओदरिय हिदो ताधे एगफालिक्खवगस्स सच्चफालिट्ठाणंतरेसु दुचरिमफालिट्ठाणाणि समुप्पण्णाणि । संपहि एगफालिक्खवगो परखेउत्तरकमेण ताव ९ ३९८. अब चरम फालिस्थान के साथ समानताका विधान करनेके लिये दो फालि क्षपकको जघन्य योग में स्थापित करके समीकरण करते हैं । यथा - सवेद भागके द्विचरम समय में जघन्य योगसे और चरम समय में असंख्यातगुणे योगसे बन्ध कर अधिकृत द्विचरम समय में स्थित हुआ क्षपकस्थान पहले के स्थान से विशेष अधिक है, क्योंकि आगे गये हुए अध्वानमात्र द्विचरम फालियोंकी अधिकता उपलब्ध होती है। अब अधःप्रवृत्तभागहार से भाजित आगे गये हुए अध्वानमात्र दो फालिक्षपकको उतारकर पुनः दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहार मात्र प्रक्षेप अधिक योगस्थान तक ले जाने पर पुनरुक्त द्विचरम फालिस्थान होता है । अब इसे यहीं पर स्थापित कर पुनः एक फालिक्षपकको दो फालिक्षपकके योगस्थानसे असंख्यात - गुणेयोग प्राप्त होने तक एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे बढ़ाना चाहिए । ६ ३९९. अब यहीं पर स्थापित कर पहले के समान समीकरण करना चाहिए । इस प्रकार इस क्रम संख्यात परिवर्तन बार जाकर अर्धयोगके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए । इस प्रकार बढ़ाने पर एक फालिक्षपकके किस स्थान में रहते हुए एक फालिक्षपकके उत्कृष्ट स्थान से नीचे द्विचरम फालिस्थान उत्पन्न हुए हैं ऐसा पूछने पर जहाँ पर दो फालि क्षपक अर्धयोगसे ऊपर दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त हुआ तथा एक फालिक्षपक भी एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे अर्धयोग प्रक्षेपभागहारको भाजित कर प्राप्त हुए एक भागमात्रको पुनः एक कम अधःप्रवृत्त भागहारमात्रको अर्धयोगसे नीचे उतारकर स्थित है तब जाकर एक फालिक्षपकके सब फालिस्थानोंके अन्तरालों में द्विचरम फालिस्थान उत्पन्न हुए | अब एक फालिक्षपकको उत्कृष्ट योगके प्राप्त होने तक एक-एक प्रक्षेप अधिकके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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