Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 367
________________ २५६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ एगचरिमफालोए समुप्पत्तोदो। णवरि सव्वचरिमफालिहाणंतरेसु दुरूऊणअधापवत्तभागहारमेत्ताणि चेव दचरिमफालिद्वाणंतराणि होति ति णत्थि णियमो, हेहिम-उवरिमरूऊणधापवत्तभागहारमेत्तचरिमफालिट्ठाणंतरेसु एगादिएगुत्तरकमेण दुचरिमफालिट्ठाणाणं अवहाणुवलंभादो। एवं दचरिमफालीओ अस्सिदूण पुरिसवेदस्स पदेससंतकम्महाणाणं परूवणा कदा। ___४०१. संपहि तिचरिमफालिविसेसमस्सियूण पदेससंतकम्मट्ठाणाणं परूवणं कस्सामो । तं जहा-सवेदचरिम-दुचरिम-तिचरिमसमएसु घोलमाणजहण्णजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसमए हिदस्स छप्फालीओ घोलमाणजहण्णजोगादो उवरि सादिरेयतिगुणमेत्तजोगट्ठाणेण परिणदएगफालिखवगदव्वेण सह सरिसाओ होति त्ति पुणरुत्ताओ। संपहि केत्तियमेतेण एवं तिगुणमद्धाणं सादिरेयं ? रूऊणअधापवत्तभागहारेणोवट्टिदतिगुणघोलमाणजहण्णजोगपक्खेवभागहारमेत्तं होदूण पुणो रूऊणधापवत्तभागहारवग्गेणोवट्टिदघोलमाणजहण्णजोगभागहारमेत्तेण समहियं । संपहि एग-दोफालिक्खवगेसु पक्खेउत्तरादिकमेण वड्डमाणेसु पुणरुत्त हाणाणि चैव उप्पजंति त्ति तेहि विणा तिण्णिफालिक्खवगो चेव पक्खेउत्तरजोगणेदव्यो । एवं णीदे अपुणरुत्तट्ठाणं होदि। एगचरिमफालीए दोहि दुचरिमफालीहि एगेण तिचरिमफालिविसेसेण च अहियत्तादो। णेदं चरिमफालिट्ठाणं, दोहं चरिमफालिट्ठाणाणमंतरे समुप्पण्णत्तादो । ण एक चरम फालि उत्पन्न हुई है। इतनी विशेषता है कि सब चरम फालिस्थानोंके अन्तरालोंमें दो कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र ही द्विचरम फालिस्थानोंके अन्तराल होते हैं ऐसा कोई नियम नहीं है, क्योंकि अधस्तन और उपरिम एक कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र चरम फालिस्थानोंके अन्तरालोंमें एकसे लेकर एक एक अधिकके क्रमसे द्विचरम फालिस्थानोंका अवस्थान उपलब्ध होता है। इस प्रकार द्विचरम फालियोंका आश्रय लेकर पुरुषवेदके प्रदेशसत्कर्मस्थानोंकी प्ररूपणा की। ६४०१. अब त्रिचरमफालि विशेषका आश्रय लेकर प्रदेशसत्कर्मस्थानोंका कथन करते हैं । यथा-सवेद भागके चरम, द्विचरम और त्रिचरम समयोंमें घोलमान जघन्य योगसे बन्ध कर अधिकृत त्रिचरम समयमें स्थित हुए जीवके छह फालियाँ घोलमान जघन्य योगसे ऊपर साधिक तिगुणे योगस्थानके द्वारा परिणत हुए एक फालिक्षपक द्रव्यके साथ समान होती हैं, इसलिए पुनरुक्त हैं। शंका-अब कितने मात्रसे यह त्रिगुणा अध्वान साधिक होता है ? समाधान-एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित तिगुना घोलमान जघन्य योगप्रक्षेपभागहारमात्र होकर पुनः एक कम अधःप्रवृत्तभागहारके वर्गसे भाजित घोलमान जघन्य योगभागहारमात्रसे अधिक होता है। अब एक और दो फालिक्षपकोंके एक एक प्रक्षेप अधिक आदिके क्रमसे बढ़ने पर पुनरुक्त स्थान ही उत्पन्न होते हैं, इसलिए उनके विना तीन फालिक्षपकको ही प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराना चाहिए । इस प्रकार ले जाने पर अपुनरुक्त स्थान होता है। इसमें एक चरम फालि, दो द्विचरम फालियाँ और एक त्रिचरम फालिविशेष अधिक है। इसलिए यह चरम फालिस्थान नहीं है, क्योंकि दो चरम फालिस्थानोंके अन्तरालमें उत्पन्न हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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